पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 36.pdf/३३७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

३४२. पत्र : वि० च० रायको

आश्रम
साबरमती
१ अप्रैल, १९२८

प्रिय डा० विधान,

आपके पत्रसे [१] मेरे अभिमानकी तुष्टि हुई है परन्तु मुझे इस लोभको रोकना ही होगा। एक तो असहयोगीके रूपमें एक ऐसे विश्वविद्यालयसे, जिसका किसी भी तरह सरकारसे सम्बन्ध है, मेरा कोई वास्ता नहीं होना चाहिए; इसके सिवा, मैं कमला भाषण-मालाकी [२]योजनाके अन्तर्गत भाषण देनेके लिए अपने-आपको योग्य और उपयुक्त व्यक्ति नहीं समझता। मुझमें वह साहित्यिक योग्यता नहीं है, जिसकी सर आशुतोषने निस्सन्देह भाषणकर्ताओंसे अपेक्षा की होगी।

आप मुझे ऐसी जिम्मेदारी सँभालनेके लिए कह रहे हैं, जिसे मेरे कन्धे बर्दाश्त नहीं कर सकते। मैं काफी ठीक हूँ। मैं अवसरकी प्रतीक्षा कर रहा हूँ और जब देश तैयार होगा तो आप मुझे राजनीतिके क्षेत्र में उसका नेतृत्व करते हुए पायेंगे । अपनी शक्तिके विषयमें मेरे मनमें कोई झूठी विनय नहीं है । म निस्सन्देह अपने ढंगका एक राजनीतिज्ञ अवश्य हूँ और देशकी स्वतन्त्रताके लिए मेरी अपनी योजना है। परन्तु वह वक्त अभी नहीं आया है और शायद इस जीवनमें कभी न आये । यदि यह वक्त नहीं आता तो मैं एक भी आँसू नहीं वहाऊँगा । हम सब ईश्वराधीन हैं। इसलिए मैं उसके निर्देशनकी प्रतीक्षामें हूँ ।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी (एस० एन० १३२१०-ए) की फोटो-नकलसे ।

३६-२०

  1. डा० रावने गांधीजीसे कलकत्ता विश्वविद्यालय में भाषण देनेके लिए प्रार्थना की थी। पिछले वक्ता एनी बेसेंट, श्रीनिवास शास्त्री और सरोजिनी नायडू थे।
  2. आशुतोष मुखर्जी द्वारा स्थापित।