पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 36.pdf/३३९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३०७
भाषण : अहमदाबादमें, बालभवनके उद्घाटनपर

है। परन्तु पोर्ट सनलाइट हमारा आदर्श नहीं हो सकती । मालिकको कर्मचारियोंके लिए जो कुछ करना ही चाहिए मेरी समझमें मेसर्स लिवर ब्रदर्स उसका निम्नतम स्तर प्रस्तुत करते हैं। उससे कम करना तो बदनामीकी बात होगी। हमें कमसे-कम करके ही सन्तुष्ट नहीं रह जाना चाहिए। हमें अपनी सभ्यताको ध्यान में रखकर सोचना चाहिए। प्राचीन कालकी सामाजिक दशाका जो चित्र 'महाभारत' और 'रामायण' द्वारा हमारे सामने प्रस्तुत किया जाता है, यदि वह सही है, तो हमारा आदर्श पोर्ट सनलाइटको बहुत पीछे छोड़ देगा। मैंने पोर्ट सनलाइटके बारेमें काफी साहित्य पढ़ा है और मैं उनके कल्याण कार्यका उत्साही समर्थक हूँ, परन्तु मेरा मत है कि हमारा आदर्श इससे ऊँचा है। पश्चिममें मालिक और कर्मचारी अभीतक अलग-अलग वर्गोंमें विभाजित हैं। मैं यह भली-भाँति समझता हूँ, अस्पृश्यताका अभिशाप हमारे देश में विद्यमान रहते हुए हमारा अपने आदर्शकी बात करना निरर्थक है। परन्तु मैं उच्चतम आदर्श किसे समझता हूँ, यदि इस बातको आपके सामने न रखूं तो मैं अपने सत्यधर्मका निर्वाह नहीं करूंगा और आपके प्रति अपने कर्तव्यका पालन भी नहीं करूंगा। मिल एजेंटों और मिल-मजदूरोंके बीच पिता और पुत्रका या सगे भाइयोंका-सा सम्बन्ध होना चाहिए। मैंने प्रायः सुना है कि अहमदाबादके मिल-मालिक अपने आपको स्वामी और अपने कर्मचारियोंको अपना नौकर कहते हैं। ऐसे अपशब्द अहमदाबाद जैसे स्थानमें, जिसे अपनी धर्मपरायणता, अहिंसा और प्रेमपर गर्व है, प्रचलित नहीं होने चाहिए। ऐसी प्रवृत्ति अहिंसाकी विरोधी है। हमारा आदर्श तो यह अपेक्षा रखता है कि हमारी सारी शक्ति, सारी सम्पत्ति और हमारा सारा दिमाग पूरी तरह उन लोगोंके कल्याणमें लगा रहना चाहिए, जिन्हें हम उनकी अनभिज्ञताके कारण और अपनी झूठी धारणाओंके कारण मजदूर या 'नौकर' कहते हैं। इसलिए मैं आपसे यह आशा रखता हूँ कि आप अपनी सारी सम्पत्तिको न्यास रूपमें रखें और उसे केवल उन लोगोंके हित साधनमें लगाएँ जो आपके लिए पसीना बहाते हैं और जिनके परिश्रमपर आपका पद और समृद्धि निर्भर है। मैं चाहता हूँ कि आप अपने मजदूरोंको अपनी सम्पत्तिका हिस्सेदार बनायें । मेरा मतलब यह नहीं कि यदि आप यह सब करनेके लिए अपने आपको कानूनी तौरपर बाँध नहीं लेते, मजदूरोंको बगावत कर देनी चाहिए। इस सम्बन्धमें जिसके बारेमें मैं सोच सकता हूँ ऐसा एकमात्र विधान पारस्परिक प्रेम और पिता पुत्रके बीच सम्मानका विधान है-कानूनका नहीं। यदि आप केवल यह नियम बना लें कि इन पारस्परिक स्नेहके दायित्वोंका मान करना है, तो श्रमिकों सम्बन्धी सारे झगड़े समाप्त हो जायें और श्रमिकोंको संघोंके रूपमें अपना संगठन करनेकी आवश्यकता ही महसूस न हो। जिस आदर्शकी मैं अपेक्षा करता हूँ, उसमें अनसूयाबहन जैसी हमारी बहनों और शंकरलाल जैसे भाइयोंके लिए कुछ करनेको नहीं बचेगा और उनका काम समाप्त हो जायेगा। परन्तु जबतक एक भी मिल-मजदूर ऐसा हो जो जिस मिलमें काम करता है उसे अपना नहीं समझता, जो पसीना छूटने और हदसे ज्यादा काम होनेकी शिकायत करता है और इसलिए अपने मालिकोंके प्रति अपने मनमें दुर्भावना बनाये रखता है, तबतक वह सम्भव नहीं है।