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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कठिनाई कहाँ है ?

आपने हमें बताया है और यह सब जगह स्वीकार किया गया है कि यह सब करनेसे मिल-मालिकोंको लाभ ही होता है। मेसर्स लिवर ब्रदर्सने जो कुछ किया वह सब करनेसे उन्हें कोई हानि नहीं हुई। उन्हें इतना उत्साह मिला कि उन्होंने नेटालमें एक और पोर्ट सनलाइट बनानेकी कोशिश की। जैसे-जैसे धीरे-धीरे हमारा अनुभव बढ़ता चलता है हमें अधिकाधिक स्पष्ट होता चलता है कि जितना अधिक हम अपने श्रमिकोंको देते हैं उतना ही हमें ज्यादा लाभ होता है। आपके कर्मचारी जिस क्षण यह अनुभव करने लगेंगे कि मिलें जैसे आपकी है वैसे ही उनकी मी हैं, वे आपके प्रति सगे भाइयोंका-सा भाव रखने लगेंगे और तब पारस्परिक हितोंके खिलाफ काम करने और श्रमिकोंके ऊपर भारी पर्यवेक्षी सिब्वबन्दी रखनेकी आवश्यकताका कोई प्रश्न ही नहीं रहेगा ।

आपने मुझे अहमदाबाद शहरको श्रमिक विप्लवसे, जैसा कि आजकल बम्बईमें हो रहा है, अछूता रखनेका श्रेय दिया है। ठीक है; मैं उस श्रेयको पूरी तरह अस्वीकार नहीं कर सकता, क्योंकि आपमें से किसी एकको भी एक क्षणके लिए भी यह सन्देह नहीं हो सकता कि यदि श्रीमती अनसूयाबहन और श्रीयुत शंकरलाल यहाँ काम न कर रहे होते तो परिस्थिति कुछ और ही होती ? सम्भवतः यह सच है कि अहमदाबादके मिल-मालिक और आप लोग बम्बईके मिल-मालिकोंकी अपेक्षा ज्यादा होशियार हैं। कोई विप्लव हो भी जाये तो जैसे कि पश्चिममें कुछ मालिक करते हैं, आप अपने लोगोंको दबानेके लिए उपद्रवकारियोंका उपयोग नहीं करते । मेरा खयाल है कि आपने श्रमिकोंकी महत्वाकांक्षाओंको दबानेवाले उस शस्त्रको स्वेच्छापूर्वक त्याग दिया है। मेरे आलोचक मुझे कहते हैं कि ये सब खयाली पुलाव हैं और यदि सम्भव हो तो अहमदाबादके मिल-मालिक भी उक्त साधनोंका सहारा लेनेमें संकोच नहीं करेंगे। परन्तु मुझे विश्वास है कि यह कहना गलत है। मैं चाहता हूँ कि आप अपने आचरणसे प्रमाणित कर दें कि उनका कहना गलत है। मुझे आशा है कि आप वह वक्त नजदीक लानेमें मदद करेंगे जब कि श्रीयुत शंकरलाल और श्रीमती अनसूयाबहन, जो काम कर रहे हैं, उसकी भी जरुरत नहीं पड़ेगी; साथ ही जबतक उसमें सफलता नहीं मिलती आप उनके काममें अपेक्षित पूरी मदद और पूरा प्रोत्साहन देंगे।

सम्भवतः अब आप समझ गये होंगे कि आज यहाँ जो शान्ति बनी हुई है उसके लिए मैं थोड़ी-सी मी नेकनामीको इतना महत्व क्यों दे रहा हूँ, इसका श्रेय मुझे नहीं, श्रीमती अनसूयाबहन और श्रीयुत शंकरलाल बैंकरको है। वे मजदूरोंके बीच रहते हैं, उनके बीच घूमते फिरते और वहीं जीवनयापन करते हैं। मैं इतना सब कुछ नहीं कर सकता। यदि आप इन मित्रोंके प्रयत्नोंमें हाथ बँटायें, तो आप देखेंगे कि इस तरहके बाल-भवन बनाने या डाक्टरी सहायता उपलब्ध करनेकी अधिक आवश्यकता नहीं रहेगी। मैं आपके इन प्रयत्नोंका महत्व कम नहीं करना चाहता, परन्तु मैं आपसे पूछता हूँ कि क्या कोई सम्पन्न व्यक्ति अपने बच्चोंको इस तरह के