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३४९. पत्र : एल० क्रेनाको

[४ मई, १९२८ ]]

[१]

यह कहते हुए मुझे अत्यन्त खेद है कि आपके पत्रके अन्तिम अनुच्छेदमें मेरे सम्बन्धमें जो उल्लेख किया गया है वह आदिसे अन्ततक मनगढ़न्त है। [२] यदि ब्रिस्टलके डीनने, रिपोर्टमें जो कुछ कहा गया है, वह बात निस्सन्देह कही है तो मुझे दुःख होगा ।

एल० क्रेना महोदय

द्वारा वाई० एम० सी० ए०

सिंगापुर

अंग्रेजी ( एस० एन० १४३४५) की फोटो-नकलसे ।

३५०. पत्र : हरिभाऊ उपाध्यायको

वैशाख १५, ४ मई, १९२८

भाई हरिभाऊ,

रायचंदभाईके लेखोंके बारेमें पुंजाभाईको मिलूंगा | मि० ग्रेगके पुस्तकका[३] हिन्दी अनुवाद अवश्य करो। चर्खा संघसे इस बारेमें पैसा मिलनेकी आशा कम है। सी०

  1. यद “ पत्र : एल० क्रेनाको”, १३-७-१९२८ का संलग्न पत्र था; देखिए खण्ड ३७ । एल० क्रेनाने अपने १८ मईके पत्र में इसको यही तारीख बताई थी।
  2. २. क्रेनाने इससे पहले गांधीजीको “पोषक सदस्यों" (सस्टेनिंग मैम्बर्स) के नाम लिखित एक पत्र भेजा था। इसके साथ सेंट्रल क्रिश्चियन एडवोकेटकी एक कतरन संलग्न थी जिसमें लिखा था: अभी हालमें ब्रिस्टलके डीनने कहा कि : " मेरे एक मित्रने श्री गांधीजीके बारेमें एक रोचक कहानी सुनाई। भारतीय हितोंके समर्थकके रूपमें गांधीजीकी एक विदेशी यात्रा के बाद लोगोंकी एक बड़ी भारी सभाने उनका कलकत्तामें स्वागत किया। उनका स्वागत करने आये १५,००० बंगालियोंकी भीड़ वहाँ इकट्ठी थी। मेरा मित्र ही एक मात्र अंग्रेज था, जो वहाँ उपस्थित था। बंगालके वक्ताओंने अपनी और गांधीजीकी प्रशंसा में तीन घंटेतक भाषण दिये। तब वह महत्त्वपूर्ण क्षण आया जब श्री गांधीजी उठे । उनका भाषण केवल एक ही वाक्यका था : मैं जिसका अत्यन्त ऋणी हूँ और सारा भारत जिसका अत्यन्त ऋणी है वह ऐसा आदमी है जिसने कभी भारतमें पैर नहीं रखा और वह ईसामसीह ही थे। " इसके बाद वे बैठ गये। क्रेनाने पूछा था " क्या आप इसका अनुमोदन करते है ? "
  3. इकोनोमिक्स ऑफ खद्दर ।