पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 36.pdf/३४६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३१४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पी० में खादीका लेख 'न० जी०' मां आवेगा । उसका सारांश 'यं० इं०'[१] में देनेकी कोशिश करूंगा।

बापूके आशीर्वाद

श्री हरिभाऊ

खादी कार्यालय

अजमेर

सी० डब्ल्यू० ६०५९ से ।

सौजन्य : हरिभाऊ उपाध्याय

३५१. भक्तिके नामपर भोग

श्री जयदयालजी गोयनकाके प्रयाससे आजकल मारवाड़ी समाजमें भक्तिरस उत्पन्न करनेका प्रयत्न चल रहा है। उसीके सम्बन्धमें भजन मण्डलियाँ स्थापित की गई हैं और भजन भवन खोले गये हैं। ऐसा एक भवन कलकत्तेमें गोविन्द भवनके नामसे खुला है। उसमें श्री जयदयालजीकी प्रेरणासे एक भाईको रखा गया था। उसने भक्तिके नामपर विषय भोगे । उसने स्त्रियोंके पाससे पूजा अंगीकार की, स्त्रियाँ उसे भगवान् मानकर पूजने लगीं, उसने स्त्रियोंको अपना जूठा खिलाया और उन्हें व्यभिचारमें उतारा । भोली स्त्रियोंने मान लिया कि 'आत्मज्ञानी' के साथका शरीर- संग व्यभिचार नहीं गिनना चाहिए।

यह घटना दुःखदायक है। किन्तु मुझे उससे आश्चर्य नहीं होता। भक्तिके नाम पर विषय-भोग भोगते हुए लोग सभी ओर दिखलाई पड़ते हैं। और जबतक भक्तिका रहस्य नहीं समझ पड़ा है, तबतक धर्मके नामपर अधर्म हो तो आश्चर्य ही क्या है ? अगर बगुला भगतोंसे अनिष्ट परिणाम न निकले तभी आश्चर्य की बात होगी। समें

मैं रामनामका, द्वादश मन्त्रका पुजारी हूँ किन्तु मेरी पूजा अंधी नहीं है। सत्य है, उसके लिए रामनाम नौकारूप है। पर मैं यह नहीं मानता कि जो ढोंगी रामनाम रटता है, उसका उद्धार होगा। अजामिल इत्यादिके जो दृष्टान्त दिये जाते हैं, वे काव्य हैं और उनमें भी रहस्य है। उनके बारेमें शुद्ध भावनाका आरोपण ‘रामनामसे मेरे विषय शान्त होंगे' -- यह माननेवालेको रामनाम फलता है, तारता है। और जो ढोंगी यह मान कर कि 'रामके नामसे मैं अपना उल्लू सीधा करूं' रामनाम लेता है, वह तरता नहीं, डूबता है “जैसी जिसकी भावना, वैसा उसको होय । " भक्तजनोंको दो बातोंका विचार करना चाहिए।

  1. महादेव देसाई द्वारा लिखा लेख १०-५-१९२८ के हिन्दी नवजीवन में प्रकाशित हुआ था तथा हरिभाऊ उपाध्याय द्वारा किया उसका संक्षेप “खादी इन सेंट्रल इंडिया" शीर्षकसे यंग इंडिया, ९-८-१९२८ में प्रकाशित हुआ था।