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३५२. पत्र : मणिलाल गांधी और सुशीला गांधीको

चि० मणिलाल और सुशीला, इस समय तुम्हें क्या लिखूं ? मेरे नैमित्तिक काममें तो किसी प्रकार भी खलल नहीं पड़ा, मैं कोई खास विचार भी नहीं करता हूँ, परन्तु मुझे अभी ऐसा लग रहा है कि जीवन अदृश्य रीतिसे कुछ बदल गया है। अनिच्छापूर्वक परन्तु भीतर ही भीतर एक आन्दोलन चल रहा है। मगनलालकी आत्मा मुझपर छाई हुई है। उसकी मृत्यु मुझे मधुर लगती है। मैं पहले मरूँगा ऐसा उसने, मैंने और बाकी सबने मान रखा था । पर मुझे कामका इतना विस्तार अपने सामने दिख रहा है कि यदि ऐसा होता तो वह पिस जाता । अभी तो सभी यह विचार कर रहे हैं कि इसे किस प्रकार मर्यादित किया जाये। और कोई उसे पार लगा सकेगा कि नहीं यह मैं अभीतक नहीं जानता हूँ । किन्तु ईश्वर पर श्रद्धा रखकर बैठा हूँ। जिसने आजतक नैया चलाई है वह आगे भी चलायेगा, फिर चाहे मगनलाल मरे या कोई दूसरा व्यक्ति । हमारा सब-कुछ चला जायेगा, किन्तु हमने जिस सत्यका विचार या आचरण किया है वह तो नहीं मर सकता ।

आज दूसरोंको पत्र नहीं लिख पाऊँगा ।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (जी० एन० ४७३७) की फोटो-नकलसे ।

३५३. पत्र : मीराबहनको

मौनवार, ७ मई, १९२८

चि० मीरा, तुम्हारा पत्र मिला। आशा है कि तुम्हारी सब व्यवस्था ठीक हो गई होगी। बहरहाल, अपनी सेहतके लिए जो आराम जरूरी हो, तुम उसका आग्रह रखोगी।

मैंने संशोधित अनुवाद घ्यानसे देखा है। बहुत अच्छा है।

यदि वल्लभभाईकी इच्छा हो तो तुम्हें उनकी सभाओंमें कभी-कभी हो आना चाहिए । सस्नेह,

बापू