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पत्र : मोतीलाल नेहरूको

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सुरेन्द्रने कल चर्मालयका कार्यभार सँभाल लिया।

सुश्री मीराबहन

स्वराज आश्रम, बारडोली

बरास्ता सूरत

अंग्रेजी (सी० डब्ल्यू० ५३०१) से ।

सौजन्य : मीराबहन

३५४. पत्र : बजकृष्ण चाँदीवालाको

७ मई, १९२८

चि० ब्रजकिसन,

तुमारा पत्र आया है। कटीस्नान लेनेका छोड़ दीया न जाय । आलमोड़ा अवश्य जाओ। जैसा दिल्लीमें खाते हो वैसा ही वहां खाना परंतु भूख ज्यादा लगनेसे ज्यादा खानेमें कोई हरज नहिं है।

बापूके आशीर्वाद

जी० एन० २३५७ की फोटो-नकलसे ।


३५५. पत्र : मोतीलाल नेहरूको

आश्रम
साबरमती
८ मई, १९२८

प्रिय मोतीलालजी,

आपका पत्र मिला । आपकी बात न माननेकी शक्ति मुझमें नहीं है। मैंने अभी- अभी आपको तार [१] भेजा है, कि आपकी इच्छानुसार मैं बम्बई आ जाऊँगा । परन्तु जैसा कि मैंने अपने तारमें कहा है, फिलहाल सक्रिय सेवा करनेका मुझमें वास्वतमें कोई उत्साह नहीं है। मेरे विचार एक पागल व्यक्तिके विचारों जैसे हैं। यहाँ मगनलालकी मृत्युने मुझपर बड़ा भारी बोझ डाल दिया है; किन्तु यहाँका काम ऐसा काम है, जिससे मुझे प्रसन्नता होती है। यदि मैं इस कामको समेट लूं, तो इससे यदि अभी नहीं, तो भविष्यमें निश्चय ही देशका बड़ा उपकार होगा। परन्तु मैं

  1. यह उपलब्ध नहीं है।