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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बम्बईमें कुछ कर पाऊँगा, इस व्यर्थकी आशासे एक दिनके लिए भी इस कामसे सम्बन्ध तोड़नेका विचार सुखद नहीं है। परन्तु यदि आप अपना आदेश वापस नहीं लेते तो, मैं आपको १६ तारीखको बम्बईमें मिलूंगा। [१]

यदि इन बड़ी राजनीतिक संस्थाओंमें से, जिनका आपने जिक्र किया है, कोई भी स्वराज्यके लिए संविधान नहीं चाहती; तो हम क्या कर सकते हैं ? हम स्थितिको वशमें नहीं रख सकेंगे; क्योंकि हममें इतनी शक्ति नहीं है कि चीजोंको एकाएक मनवा लें। मुझे जातीय प्रश्नके वैधानिक समाधानमें विश्वास नहीं है। फिर लगभग हर मामलेमें मेरे विचार उग्र हैं; उन्हें कौन सुनेगा ? परन्तु मेरे विचारोंके अलावा, जब- तक हम प्रतिनिधियोंकी उपस्थिति के बारेमें आश्वस्त न हों, क्या बम्बईमें बैठक बुलाना ठीक राजनीति भी होगी ? पहलेसे ही यह जान लेना अच्छा रहेगा कि हम बैठकमें जिनकी उपस्थिति चाहते हैं, वे वहाँ आयेंगे भी या नहीं। यदि उत्तर नकारात्मक आये तो केवल भावी कार्यक्रमका निश्चय करनेके लिए कार्य समितिको बैठक बुला ली जाये। मेरे सुझावका क्या महत्व है सो आप देख लें। मुझे पूरी स्थितिका ज्ञान नहीं है; इसलिए सम्भवतः मेरा विचार बहुत महत्वपूर्ण नहीं होगा। इसका निर्णय तो आप ही कर सकते हैं ।

मिलोंके बारेमें जब हम मिलेंगे [ तब बात करेंगे ] ।

हृदयसे आपका,

पण्डित मोतीलाल नेहरू

आनन्द भवन

इलाहाबाद

अंग्रेजी (एस० एन० १३२१८) की फोटो-नकलसे ।

  1. ३ मईके अपने पत्र में मोतोलालने लिखा था: डा० अन्सारीने १६ मईको कार्य समितिको बैठक बुलाने के लिए जवाहरको अनुदेश दिया है. • यह काम कार्य समितिका होगा कि वह स्थितिके सब पहलुओंका पूरी तरह अध्ययन करे और इस सम्बन्ध में पूरी तरह निश्चय कर ले कि फिलहाल क्या करना देशके बहुत ज्यादा हितमें है। जब हम ऐसा निश्चय कर लें तब जो भी हमारी धारणाएँ या विश्वास हों उनसे सम्बन्धित अपने विचारोंको सर्वदलीय सम्मेलन या कुछ दलोंके सम्मेलनपर थोप सकते हैं। मैं केवल यह चाहता हूँ कि जब ये सभाएँ हो रही हों तो आप बम्बई में रहें ताकि जो लोग आपसे सलाह करना चाहे वे आप तक पहुँच सकें।