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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कांग्रेसियोंके कुछ खास कामोंका विरोध या समर्थन करनेके लिए कांग्रेसके प्रस्तावोंका हवाला देना फिजूल है।

इसलिए, हम इस प्रश्नपर फिरसे विचार करें कि कांग्रेसी स्वेच्छापूर्वक विदेशीके स्थानपर स्वदेशी मिलोंके कपड़े पहनें या उनकी फेरी लगायें। हम बंगालके अनुभवसे परिचित हैं । बंग-भंगके दिनोंमें मिल-मालिकोंकी बेइमानी और लालचके कारण बंगालके स्वदेशी आन्दोलनको धक्का लगा था। मिल-मालिकोंने कपड़ेके दाम बढ़ा दिये और विदेशी कपड़े तकको भी स्वदेशी कहकर बेचा। इसका कोई भरोसा नहीं है कि इस बार वे कोई बेहतर बरताव करेंगे। वस्तुतः नकली खादीके बारेमें मैंने जो तथ्य प्रकाशित किये हैं उनसे तो जान पड़ता है कि मिलें कपड़ा खरीदनेवालोंके व्यापक लाभकी परवाह न करके अपने फायदेके लिए स्वदेशी भावनाका नाजायज फायदा उठानेमें नहीं चूकेंगी ।

अगर मिलें भी इसमें ईमानदारीके साथ शामिल हो जायें तो भी कांग्रेसियोंके लिए मिलोंका कपड़ा पहनने या उसका विज्ञापन करनेकी जरूरत नहीं होगी। इस आन्दोलनमें मिलोंके ईमानदारीसे शामिल होनेका अर्थ है, उनका खादीके लिए विज्ञापन करना, खादी बेचना, खादी-भावनाको ग्रहण करना, और मिलके बने कपड़ेके ऊपर खादीकी श्रेष्ठता स्वीकार करना ।

यह बात पक्के तौरपर समझ लेनी होगी कि अगर मिलें चाहें भी तो अकेले वे हम लोगोंकी जिन्दगीमें तो विदेशी कपड़ा नहीं हटा सकतीं। इसलिए देशमें कोई- न-कोई ऐसी संस्था जरूर होनी चाहिए, जो जहांतक विदेशी वस्त्रके बहिष्कारका सम्बन्ध है, अपनी शक्ति केवल खादी-प्रचार पर ही लगाये। ऐसी संस्था सन् १९२० से कांग्रेस रही है। खादी-उत्पादन और खादी-प्रचारसे दो तरहके प्रभाव एक ही साथ पड़ते हैं। पहले तो इससे मिल-मालिकोंके लोमपर अंकुश रहता है, और दूसरे चाहे यह बात अजीब लगे, उससे स्वदेशी मिलोंको विदेशी मिलोंके साथ प्रतियोगिताके संघर्षमें परोक्ष किन्तु बहुत प्रभावशाली रूपमें प्रोत्साहन मिलता है। अगर कांग्रेसी केवल खादीपर ही अपनी शक्ति लगाते हैं तो इससे खादीके पाँव जमते हैं और मिलोंको उन क्षेत्रों में प्रभावशाली रूपमें काम करनेकी सुविधा मिल जाती है जहाँपर कांग्रेसका प्रभाव अभी नहीं के बराबर है। इसलिए मिलोंने खादी-प्रचारको कभी बुरा नहीं माना है। इसके विपरीत मिलोंके कई एजेन्टोंने मुझे विश्वास दिलाया है कि खादी-प्रचारसे उन्हें लाभ ही हुआ है, क्योंकि इससे विदेशी वस्त्रके विरुद्ध वातावरण बना है और इससे वे विदेशी वस्त्रोंके मुकाबलेमें अपना मोटा कपड़ा बेच सके हैं। एकमात्र विशुद्ध खादीके प्रचारको रोक दीजिए, मिलके कपड़ोंसे खिलवाड़ शुरू कीजिए और आप खादीको खत्म कर डालेंगे और अन्तमें जाकर स्वदेशी मिलोंके कपड़ेको भी खत्म कर डालेंगे, क्योंकि वे अकेले अपने पैरों पर खड़ी होकर विदेशी मिलोंकी प्रतियोगितामें नहीं ठहर सकतीं। अगर खादी-भावना न हो तो विदेशी और देशी मिलोंकी प्रतियोगिताके बीच खलल डालनेवाली चीज एक स्वस्थ जन-भावना बिलकुल ही नहीं रहेगी।