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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

तरकीब बहुत चल चुकी। कुछ लोगोंको हमेशा बेवकूफ बनाये रखा जा सकता है, मगर सभी लोगोंको हमेशा बेवकूफ बनाये रखना सम्भव नहीं है। पूंजीकी वृद्धिके लिए बेईमानी करना आवश्यक नहीं होना चाहिए।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १०-५-१९२८

३५९. सभ्यताकी विनाशकारी गति

हम अपने युगकी उन्मादकारी शिक्षाके जिस सम्मोहनकारी प्रभाव में जीवन-यापनके लिए विवश होते हैं यदि हमपर वह प्रभाव न होता तो हम लोगोंको उनकी भौतिक स्थितिमें -- - जो आखिर एक अनित्य वस्तु है - सुधार होनेकी दूरस्थ, अनिश्चित और अकसर व्यर्थ आशामें उनके अपने वर्तमान ईमानदारीके धन्धोंसे वंचित करना अधर्म मानते। यदि सभ्यताका अर्थ इतना ही है कि तत्त्वका विचार किये बिना केवल वस्तुके बाह्य रूपमें परिवर्तन किया जाये तो सभ्यता संदिग्ध मूल्यकी वस्तु है। फिर भी श्रीयुत बालाजी रावके भेजे हुए उक्त अनुच्छेदका [१] अर्थ यही है । इस मान्यताकी आड़में कि इस तरहके वाणिज्यसे लोग सभ्य बनते हैं बर्माके भोले-भाले लोग निर्धन बनाये जा रहे हैं और उनकी अवस्था पशुओं जैसी हुई जा रही है। जैसा श्री मधुसूदनदासने बताया है, जो लोग केवल पशुओंके साथ काम करते हैं और दस्तकारियोंको छोड़कर हाथके हुनरको भूल जाते हैं, वे शरीरसे ही नहीं, बल्कि मस्तिष्कसे भी निर्धन हो जाते हैं।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १०-५-१९२८

३६०. पत्र : बहरामजी खम्भाताको

१० मई, १९२८

माईश्री खम्भाता,

तुम्हारा पत्र मिला । तुम्हारे तारके विषय में तो लिख चुका हूँ। अपने बेटे जालके लिए बिलकुल दुख न करना । उसकी आत्मा तो अमर है। इसके अतिरिक्त उसकी आत्मा बहुत उदात्त थी, इसलिए इस समय जहाँ भी हो, सुखमें ही होगी। यदि हम दुख मानते हैं तो केवल अपने क्षणभंगुर स्वार्थके कारण हो । अपना स्वास्थ्य

  1. यह यहाँ नहीं दिया जा रहा है। इसमें कहा गया था, पयपि बर्माके सात राज्योंमें इस समय कुछ विदेशी कपड़ा आ रहा है; किन्तु वहाँ यह रिवाज था कि स्त्रियां अपने और परिवारके कपड़े वहीं उत्पन्न कपाससे स्वयं तैयार करती थीं।