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३६२. पत्र : मेरी जे० कैम्बेलको

आश्रम
साबरमती
११ मई, १९२८

प्रिय बहन,

आपका कृपा पत्र मिला; उसके लिए धन्यवाद ।

विश्व मद्यनिषेध सम्मेलन महिला शाखाको सन्देशमें भेजने योग्य एक ही बात मुझे सूझती है और वह यह है कि जो बहनें वहाँ इकट्ठी हुई हैं उन्हें प्रत्येक देश में चलाये जा रहे मद्यनिषेध आन्दोलनके तथ्योंका अध्ययन करना चाहिए; वे सही हलकी आशा तभी कर सकती हैं, उससे पहले नहीं। क्योंकि मैं देखता हूँ कि बहुत से सुधार आन्दोलनोंमें तथ्योंके इस सीधे-सादे आवारकी ही कमी रही है। दृष्टान्तके रूप में मैं भारतको ही लेता हूँ। बहुत कम मद्यनिषेध संस्थाएँ यह जानती हैं कि भारत में पूर्ण मद्यनिषेध होने में रुकावट लोगोंने नहीं वरन् यहाँको वर्तमान सरकारकी नीतियोंने डाली है।

मेरे दुःखमें मेरे प्रति सहानुभूति प्रकट करनेके लिए धन्यवाद । आपकी तरह मैं भी यह आशा करता हूँ कि कभी हमारी और आपकी भेंट होगी।

हृदयसे आपका,

कुमारी मेरी जे० कैम्बेल
दिल्ली ।

अंग्रेजी (एस० एन० १३२२०) की फोटो-नकलसे ।

३६३. पत्र: एस० गणेशनको

आश्रम
साबरमती
११ मई, १९२८

प्रिय गणेशन,

मैं 'यंग इंडिया के व्यवस्थापकको लिख रहा हूँ कि यदि उन्हें कोई आपत्ति न हो तो आपको जिस सूचीकी आवश्यकता है वह आपको भेज दी जाये ।

यदि मदद देनेवाले पर्याप्त मित्र आपको मिल जाते हैं तो संस्थाको लिमिटेड कम्पनी बनाने में मुझे आपत्ति नहीं है। ऊँचे ब्याज दर पर रुपया उधार लेनेकी बातसे मैं सहमत नहीं हो सकता ।