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३६५ पत्र: शचीन्द्रनाथ मित्रको

आश्रम
साबरमती
११ मई, १९२८

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। यदि विद्यार्थी अपने आपको उन गरीब लोगोंके साथ अभिन्न बनाये रखना चाहते हैं, जिनके पैसेके बलपर वे सरकारी स्कूलों और कालेजों में पढ़ रहे हैं, तो मैं उन्हें यही सलाह दे सकता हूँ कि उन्हें मूल्य और परिणामका ध्यान किये बिना साहसपूर्वक खादी और कताईको अपना लेना चाहिए ।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत शचीन्द्रनाथ मित्र

५/२ कान्तापुकुर लेन
बाग बाजार

कलकत्ता

अंग्रेजी (एस० एन० १३६००) की माइक्रोफिल्मसे ।

३६६. पत्र : देवचन्द पारेखको

११ मई, १९२८

भाई देवचन्द भाई,

भाई भगवानजी आये थे। उनका कहना है कि भाई रेवाशंकर और मनसुखभाईकी पत्नीके बीचके झगड़ेके लिए यदि पंच नियुक्त कर दिया जाये तो अच्छा हो। इसके लिए उन्होंने कृष्णलाल झवेरीका नाम सुझाया है अथवा जिसे भी आप नियुक्त करना चाहें। मुझे लगता है कि यह बात तो आप स्वीकार कर ही लेंगे।

बापूके वन्देमातरम्

गुजराती (जी० एन० ५६९९) की फोटो-नकलसे ।