पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 36.pdf/३६०

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३६७. पत्र : मीराबहनको

११ मई, १९२८

चि० मीरा,

मुझे खुशी है कि बुखारसे तुम्हारा पिण्ड छूट गया है। तुमको मजबूत बनना चाहिए; मुझे अपना वजन लिखकर भेजो। तुम वहाँ वल्लभभाईके अधिकारमें हो। अगर वे चाहें तो तुम वहाँ बनी रहकर जिस हदतक वे चाहें संघर्ष में भाग लो। अगर तुम्हें वहाँ, शुरूमें तय किये हुए कार्यक्रमसे ज्यादा ठहरना हो, तो तुम चाहे जब अपना सामान ले जानेके लिए आ सकती हो ।

सस्नेह,

बापू

अंग्रेजी (सी० डब्ल्यू० ५३०३) से ।
सौजन्य : मीराबहन

३६८. पत्र : टी० बी० केशवरावको

आश्रम
साबरमती
१२ मई, १९२८

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला । यदि मेरी मान्यताके अनुरूप भारतमें आदर्श दुग्धालय और चर्मालय जगह-जगह खुल जायें तो इससे अधिक प्रसन्नता मुझे किसी अन्य चीजसे नहीं होगी; पर दुर्भाग्यवश में वर्तमान गो-[रक्षा] समितियोंको भी अपने विचारों के अनुरूप नहीं बना सका हूँ। हरएकको अलग-अलग और बार-बार पत्र लिखने के बावजूद उन्होंने जवाब नहीं दिया है, यहाँ तक कि पूछी गई जानकारी भी मन्त्रीको नहीं भेजी है।

जैसा कि आप 'यंग इंडिया' में देख सकते हैं, आर्थिक सहायता भी कुछ खास नहीं मिली है। ठोस सहायता व्यक्तिगत मित्रोंसे ही मिली है, जन-साधारणसे नहीं। जो भी दान और सूत मिलता है उसका हिसाब समय-समयपर 'यंग इंडिया' में प्रकाशित किया जा रहा है। एकत्रित कोषसे आश्रम में स्थित चर्मालय और गोशाला दोनोंको आंशिक सहायता दी जाती है।