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अपील:बम्बई की जनता से

है। दूसरी शिक्षासे उसपर ज्यादा खर्च करना है, उसे प्रधानता देनी है। इस चीज पर आज तक नहींके बराबर अमल हुआ है। अब मण्डलको यह हालत जल्दी बदलनी है।

मैं यह मान लेता हूँ कि इस प्रस्तावसे शहरोंके राष्ट्रीय विद्यालयों में पढ़नेवाले विद्यार्थी भी अपना धर्म समझ जायेंगे। जो आशाएँ सरकारी स्कूलोंमें जानेवाले विद्यार्थी रख सकते हैं, वे आशाएँ राष्ट्रीय विद्यापीठोंमें पढ़नेवालोंके लिए त्याज्य हैं। सरकारी पाठशालाओंमें बढ़ियासे बढ़िया तालीम पानेवाले सरकारी नौकरी करने में अभिमान समझते हैं, सरकारके दीवानी या फौजी महकमे में बड़ा ओहदा पानेकी उम्मीद रखते हैं। सरकारी स्कूलोंके मार्फत सरकार हर साल अपनी जरूरतसे बहुत ज्यादा नौकर तैयार कर लेती है। राष्ट्रीय विद्यापीठमें पढ़नेवाले विद्यार्थियोंको यदि उसके प्रति गर्व हो, तो उनका पहला लक्ष्य राष्ट्रीय कामोंमें पड़कर गुजर करना होगा। इन कामोंकी अनिश्चिततामें ही वे निश्चितता देखेंगे। वे यह मानेंगे कि उनके इन प्रवृत्तियोंमें पड़ने से वे जरूर निश्चित हो जायेंगी। उन्हें लालच वेतनका न होकर सेवाका होगा। राष्ट्रीय प्रवृत्तिमें उन्हें गुजारे भरको मिल जायेगा, तो उसीमें वे सन्तोष कर लेंगे और दूसरी किसी भी जगह ज्यादा वेतनका प्रलोभन होगा तो उसे छोड़ देंगे। आज यह हालत नहीं है, इसे सुधारना नये मण्डलके और विद्यार्थियोंके हाथमें है। अछूतोंकी सेवा, मजदूरोंकी सेवा, खादी-सेवा वगैरा व्यापक और रचनात्मक कामों में राष्ट्रीय विद्यापीठोंके ही विद्यार्थी होने चाहिए। उनमें कितने ही लगे हुए भी हैं,पर और बहुतोंकी जरूरत है। इस कमीको पूरा करने में मण्डलको कार्यदक्षता और कर्त्तव्य-परायणता निहित है।

[ गुजराती से ]
नवजीवन, ५-२-१९२८

५. अपील : बम्बईकी जनतासे

मैं आशा करता हूँ कि बहिष्कार' शान्तिपूर्वक सम्पन्न हो जायेगा और राष्ट्रके दृढ़ संकल्पको व्यक्त करेगा।

गांधी
 
[ अंग्रेजीसे ]
बॉम्बे क्रॉनिकल, ३-२-१९२८

१.साइमन कमीशनका, जिसकी नियुक्ति शासन प्रणालीको जांच-पड़ताल करनेके लिएकी गई थी। देखिए "हड़तालके बाद?", ९-२-१९२८।