पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 36.pdf/४३

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८. पत्र : रेवाशंकर झवेरीको

अहमदाबाद
सोमवार [ ६ फरवरी, १९२८]

आदरणीय रेवाशंकर भाई,

परसों चि० छगन वगैरा आये थे । मोरबीके ठाकुर साहबसे काफी बातें हुई। उन्होंने खादीके लिए काममें आनेवाली कपास परसे चुंगी हटा लेनेका वचन दिया है। गोरक्षा के लिए भी मुझसे कोई कार्यकर्ता मांगा है। आपकी बात भी हुई । आप मोरबी में रहकर ठाकुर साहबकी सहायतासे यह सब काम करें, ऐसा उन्होंने कहा है। मैं तो यह मानता हूँ कि आप थोड़े बहुत समय वहाँ रहें तो अच्छा हो । मीरा बहनने जो बताया उस से ऐसा जान पड़ता है कि अब आपकी तबियत ठीक रहती है। धीरूकी' क्या खबर है ?

मोहनदासके प्रणाम

रेवाशंकर जगजीवन झवेरी
मणी भवन
लैबर्नम रोड
गामदेवी, बम्बई

गुजराती (जी० एन० १२६७) की फोटो-नकलसे ।

९. पत्र : घनश्यामदास बिड़लाको

आश्रम
७ फरवरी, १९२८

प्रिय घनश्यामदासजी,

आपका पत्र मिलनेसे चिंता तो अवश्य होती है। दवासे तो थकान लगना हि चाहिये। मेरी दीष्टिमें प्रथम उपाय तो संपूर्ण उपवास हि है। मुझको इसका कोई डर नहीं है। उपवाससे नुकसान हो ही नहीं सकता है और उपवास एक दो दिनका नहीं किंतु १०-१५ दिनका होना चाहिये। यदि उपवास करनाहि है तो आपको यहां रहना चाहिये। उपवासका शास्त्र जाननेवाले एक दो सज्जन हैं उनको बुला सकते

१. डाककी मुहरसे।

२. छगनलाल मेहता; डा० प्राणजीवन मेहताके पुत्र ।

३. छगनलाल मेहताका पुत्र; वह क्षप रोगसे पीड़ित था।