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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

रहा हूँ। मैं केवल थोड़ा-सा पत्र व्यवहार करता हूँ; और वह भी बोलकर लिखा देता हूँ ।

मैं तुम्हें याद दिला दूं कि तुम्हें अभी श्रद्धानन्द लेखमाला' पूरी करनी है।

इस पत्रके साथ मैं कनिकराजके पत्रकी नकल भेज रहा हूँ। तुम इसका मतलब मेरी अपेक्षा ज्यादा अच्छी तरहसे समझ सकोगे ।

मैं आशा करता हूँ कि तुम छगनलालके साथ उड़ीसा जाओगे ताकि वह ठीक-ठीक जान समझ ले कि तुम उससे क्या काम चाहते हो ।

आश्रममें सबको मेरा प्यार ।

अंग्रेजी ( एस० एन० १३०६५) की फोटो--नकलसे ।

१३. पत्र : श्रीमती एल० सी० उन्नीको

सत्याग्रह आश्रम
साबरमती
८ फरवरी, १९२८

प्रिय बहन,

आपके दो पत्र मिले हैं और दोनोंको ही जवाब देनेके लिए मैंने अपने पास रख छोड़ा है। कालीकट में आपसे मिलकर मुझे बड़ी खुशी हुई और आपके पत्र पाकर और यह जानकर कि मेरे लेखोंसे आपको कुछ थोड़ी-बहुत मदद मिली है, मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई। आप नियमित रूपसे सूत कात रही हैं, यह जानकर आनन्द हुआ। यह देखते हुए कि आप कताईका काम एक धार्मिक भावनासे कर रही हैं, मैं चाहूँगा कि आप अपने सूतकी मजबूती और बारीकीकी जाँच करना भी सीख लें। यदि आप 'यंग इंडिया' की पाठ हैं, तो आपको पिछले अंकोंमें इस सम्बन्धमें हिदायतें मिल जायेंगी। मैं यह भी चाहूँगा कि आप 'हाथ कताई' पर पुरस्कृत लेख भी पढ़ लें।

यदि आप सुबह-सवेरेका समय कताईके लिए नियत कर सकें, तो मुझे कोई सन्देह नहीं कि उस समय आपको जो शान्ति और आनन्द इस काममें मिलेगा वह किसी और तरीकेसे मिलनेवाला नहीं है, बशर्ते कि निश्चय ही सबसे पहला काम सुबह यह किया जाये कि परमेश्वरकी उपासना द्वारा स्वयंको प्रकृतिस्थ बना लिया जाये। यह पूरे भरोसे के साथ अपने आपको माँकी गोदमें डाल देने जैसा है।

१. इसकी तीन किश्तें पहले ही २२-९-१९२७, २६-१२-१९२७ और ५-१-१९२८के यंग इंडिया में छप चुकी थीं।

२. एस० वी० पुणताम्बेकर और एन० एस० वरदाचारी द्वारा लिखा लेख हाथ कताई और हाथ बनाई।