१८. पत्र : मोतीलाल नेहरूको
सत्याग्रह आश्रम
साबरमती
११फरवरी,१९२८
प्रिय मोतीलालजी,
मैं फिर बिस्तर पर पड़ गया हूँ; और मैं समझता हूँ कि किसी दिन यह उतार- चढ़ाव ही अन्तिम प्रश्नका निर्णय कर देगा। रक्तचापके बारेमें इस बार विचित्र बात यह है कि मुझे खुद कुछ नहीं महसूस होता है। लेकिन जहाँ तक हो सकता है, मैं डॉक्टरोंकी बात मान रहा हूँ।
आपका तार मिला । मुझे खेद है कि आपके फिरसे काममें जुटनेसे पहले हम मिल नहीं सके। लेकिन मैं समझता हूँ कि यही होना था।
जवाहर मुझे बता रहा था कि आपका स्वास्थ्य भी कुछ बहुत ठीक नहीं चल रहा है। फिर भी मैं आशा करता हूँ कि समुद्री यात्रा के दौरान आप पूरी तरह स्वस्थ हो गये होंगे ।
हृदयसे आपका,
१९. पत्र : ए० फेनर ब्रॉकवेको
सत्याग्रह आश्रम
साबरमती
११ फरवरी, १९२८
प्रिय मित्र,
सह-पत्रों सहित आपका पत्र मिला। मुझे पाल तथा अन्य लोगोंके जरिये आपके स्वास्थ्यकी प्रगतिके बारे में बराबर खबर मिलती रहती है। लेकिन मुझे खुद आपका पत्र पाकर और यह जानकर बहुत ही खुशी हुई कि आप पूर्णतः स्वस्थ होनेकी दिशामें प्रगति कर रहे हैं और खुद लम्बे पत्र लिख सकते हैं ।
हाँ, मद्रासकी हड़तालके दौरान हिंसाका होना बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण हुआ । नियन्त्रणमें जरा-सी ढील होते ही हिंसा भड़क उठती है।
श्री रनहम ब्राउनका एक पत्र मुझे मिला था। मैंने जवाबमें यह लिखकर भेज दिया था कि आना सम्भव नहीं है। मुझे अब भी ऐसा लगता है कि भारत से बाहरका मेरा काम भी भारतीय मंच परसे ही ज्यादा अच्छी तरह हो जाता है। इसके बारेमें यह कहा जा सकता है कि यह अभी प्रयोगकी स्थितिमें ही है और अभी