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२६. पत्र : रोमाँ रोलाँको

आश्रम
साबरमती
१४ फरवरी, १९२८

प्रिय मित्र,

मीराने आपके अभी हालके पत्रका मेरे लिये अनुवाद कर दिया है।

आपके दुःखमें मेरी पूरी-पूरी हार्दिक संवेदना है, खासकर इसलिए कि वह दुःख आपको एक पत्रसे पहुँचा है; जिससे आपको सन्देह हुआ है कि मेरा हृदय कठोर है। मैं जो भी कुछ करता और सोचता हूँ, उस सबमें मुझे सही पानेकी आपकी इच्छाकी मैं कद्र करता हूँ । वास्तवमें मैं आपका ठीक-ठीक साथ देना चाहता हूँ; लेकिन अगर मुझे आपकी हार्दिक मैत्री बरकरार रखनी है, तो मुझे अपने प्रति भी सच्चा होना ही चाहिए ।

मैं पहले आपको यह बता दूं कि मेरे विचारोंसे साम्य रखते हुए भी मीराके पत्रसे उसके अपने विचार झलकते है। जहांतक मैं मीराको जानता हूँ न उसका और न मेरा ही कोई विचार उन दोनों भले किसानोंके मूल्यांकनका था। उनका कार्य निस्सन्देह एक वीरताका कार्य था । हमारे मनमें एक युद्ध-प्रतिरोधीकी वीरताकी बात थी; और आपने जो लिख भेजा था और मीराने उसकी जिस तरहसे व्याख्या की थी, उसमें मुझे उस विशेष प्रकारकी वीरता दिखाई नहीं पड़ सकी, जिसे एक युद्ध-प्रतिरोधी अपने निजी जीवनमें प्रदर्शित करता है। जोन ऑफ आर्क एक वीर महिला थीं। इसी तरह लियोनिडस और होरेशियस वीर थे। लेकिन इनमें से हर व्यक्तिकी वीरता भिन्न-भिन्न प्रकार की थी, और वह अपने-अपने क्षेत्रमें महान् और सराहनीय थी।

किसानोंके दिये हुए उत्तरोंमें मुझे युद्धके रूपमें युद्धके प्रति कोई निश्चित घृणा और युद्धका प्रतिरोध करते हुए कठिनसे-कठिन कष्ट सहनेका कोई संकल्प दिखलाई नहीं देता है। यदि मेरी याददाश्त ठीकसे मेरा साथ दे रही है तो ये किसान मित्र सीधे-सादे ग्राम्य-जीवनका प्रतिनिधित्व और संरक्षण करनेवाले वीर पुरुष हैं। ये वीर पुरुष सतत् प्रयत्नशील युद्ध-प्रतिरोधी किस्मके वीरोंसे कम महत्वके नहीं हैं। हम इस सारी वीरताको सँजोकर रखना चाहते हैं, लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि यदि हम

१.रोमा रोलॉने अपने ७ मार्चके जवाबमें लिखा था: “...सवायके उन दा किसानों के बारेमें आप जो कुछ कहते हैं, मैं समझता हूँ। आपके तकौंको मानता हूँ, लेकिन साथ ही में यह मानता हूँ कि कमसे-कम यूरोप में बहुत कम ऐसे स्त्री-पुरुष हैं जिनके लिए 'युद्ध-प्रतिरोध' की बात विचारोंके अन्य तस्वोंके साथ मिली-जुली न हो, क्योंकि लगभग हर विचार चाहे वह कितना ही तीव्र क्यों न हो, मानव मन में पूर्णत: शुद्ध नहीं होता।"