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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हर तरहकी वीरताका अलग-अलग प्रतिपादन एवं निरूपण करें तो हम वीरों और सत्यके हितकी अधिक सेवा करेंगे।

आपने जिज्ञासावश विगत युद्धमें मेरे हिस्सा लेनेका प्रश्न उठाया है। यह एक उचित प्रश्न है। आपके प्रश्नकी पहलेसे ही कल्पना करके मैंने 'आत्मकथा ' के अन्तिम अध्याय में उसका जवाब दे दिया था । कृपया उसे ध्यानसे पढ़िए और आपको जब भी फुर्सत हो, मुझे बताइए कि आप उसमें प्रस्तुत तर्कके बारेमें क्या विचार रखते हैं। मैं आपकी रायकी कद्र करूँगा ।

आखिरमें यह कहूँगा कि मैं पूर्ण एवं निर्दोष जरूर बनना चाहता हूँ, लेकिन मैं अपनी सीमाएँ जानता-पहचानता हूँ और उन्हें दिन-ब-दिन और भी साफ तौरसे समझता जा रहा हूँ। कौन जाने कितनी जगहों पर मुझसे हृदयकी कठोरताका दोष हुआ होगा। यदि आपने मेरे लेखोंमें एकाधिक स्थानोंपर उदारताकी कमी देखी हो, तो इससे मुझे आश्चर्य नहीं होगा। मैं तो आपको केवल यही बता सकता हूँ कि गलतियाँ हुई हैं और मेरे प्रार्थनापूर्वक अन्यथा-प्रयत्नके बावजूद हुई हैं। मैं समझता हूँ कि पहलेके ईसाइयोंने शैतानको केवल एक बुरा तत्व बिना किसी कारणके ही नहीं माना था; बल्कि बुराईका साक्षात् अवतार माना था। वह जीवनके हर क्षेत्रमें हम पर हावी दिखाई देता है; मनुष्यका कर्तव्य है कि वह उसे शक्तिहीन बना दे।

मीराको लिखा गया आपका यह पत्र मेरे मनमें आपको सदेह देखनेकी और भी ज्यादा उत्सुकता जगाता है। यदि मेरा स्वास्थ्य ठीक रहा और यदि मेरी अन्तरात्माकी आवाजने यूरोप जानेकी प्रेरणा दी तो इस साल ऐसा कर सकनेकी थोड़ी आशा है। मैं दो निमन्त्रणों पर गम्भीरतापूर्वक विचार कर रहा हूँ और आपसे मिलनेकी इच्छा शायद उन निमन्त्रणोंको स्वीकार कर लेनेके पक्षमें जल्दी निर्णय करा दे।

हृदयसे आपका,

रोम रोलाँ
अंग्रेजी (एस० एन० १४९४२) की फोटो-नकलसे ।




१. देखिए 'आत्मकथा', भाग ४, अध्याय ३८।

२. इसके जवाब में रोमा रोलोंने लिखा था, "यदि मैं आपसे यह कहूँ कि आपके विचारोंमें पैठ सकने और उनको सही मान सकनेको पूरी ख्वाहिशके बावजूद मैं ऐसा कर ही नहीं सकता ... तो इसके लिए आप मुझे क्षमा कर दीजिएगा। "