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२७. कसौटीपर

विद्यार्थियोंको जैसा रौलट ऐक्टके आन्दोलनके जमानेमें अनुभव हुआ था, वैसा ही फिरसे हो रहा है। उन महत्वपूर्ण दिनोंमें एक विद्यार्थीने मुझे लिखा, चूँकि मुझे सरकारने विद्यालयसे निकाल दिया है, मेरा जी करता है कि मैं आत्माघात कर लूं। अब दूसरा विद्यार्थी लिखता है:

अनुक स्थानके विद्यार्थियोंने मातृभूमिकी पुकार सुनी और उसके आह्वानका अनुकूल उत्तर दिया। हमने तीन फरवरीको हड़तालकी थी। हमारे इस साहसिक कामके लिए हम सबपर दो-दो रुपयेका जुर्माना हुआ है। बेचारे गरीब विद्यार्थियोंको फीसकी माफी, आधी माफी और छात्रवृत्तियोंसे हाथ धोना पड़ रहा है। आप कृपा कर हमारे प्रधानाध्यापक श्री...को पत्र लिखें या 'यंग इंडिया' की मार्फत उन्हें सलाह दें। उन्हें बताइये कि हम लोग मुजरिम नहीं हैं। हमने कोई जुर्म नहीं किया है । आप उनसे कहिए कि हमने माताकी पुकार सुनी, उसे माना, यथाशक्ति उसे अपमानित होनेसे बचाया; उनसे कहिए कि हम कायर नहीं हैं। कृपया आप हमारी सहायता करनेको आगे आइए ।

मैं प्रधानाध्यापकको पत्र लिखनेकी सलाह पर अमल नहीं कर सकता ? अगर उसे अपनी नौकरी नहीं गँवानी है, तो मैं समझता हूँ कि उसे कुछ-न-कुछ अनुशासनात्मक कार्रवाई करनी ही पड़ेगी। जब तक शिक्षा-संस्थाएँ सरकारकी छत्रछायामें हैं, सरकारके समर्थनमें उनका उपयोग किया ही जायेगा, किया भी जाना चाहिए; तथा जो विद्यार्थी या शिक्षक सरकार विरोधी लोकप्रिय कामोंका समर्थन करते हैं उन्हें समझना चाहिए कि उन्हें उसका मूल्य क्या चुकाना होगा और नौकरीसे अलग कर दिये जानेका खतरा मोल लेना होगा। देशभक्तिकी दृष्टिसे विद्यार्थियोंने जनताके आन्दोलनमें शरीक होकर बहुत ही अच्छा और बहादुरीका काम किया। अगर वे देशकी पुकार पर ध्यान न देते तो, उनपर आधिक नहीं तो कमसे-कम देशप्रेमकी कमीका इल्जाम तो लगाया ही जाता । सरकारको दृष्टिसे उन्होंने जरूर गलत काम किया और उसके क्रोध-भाजन बने । विद्यार्थी दुरंगी चाल नहीं चल सकते। अगर जनताके हितोंका समर्थन करना है तो उन्हें अपनी पढ़ाईको उस हितसे कम महत्वका मानना होगा और जब वह देशहितके आड़े आये, तब उसका त्याग करना पड़ेगा। मैंने यह १९२० में स्पष्ट देखा; और बादके अनुभवोंने मेरे पहलेके इस विचारको और भी पक्का कर दिया है। विद्यार्थियोंके लिए निस्सन्देह सबसे निरापद और सम्मानजनक रास्ता तो यह है कि कुछ भी क्यों न हो सरकारी स्कूलों और कालेजोंको छोड़ दिया जाये। इससे नीचेके दर्जेका रास्ता यह है कि जब कभी सरकार और जनतामें संघर्ष हो, वे अपने विद्यालयोंसे निकाल बाहर कर दिये जानेके लिए तैयार रहें। दूसरी जगहोंकी तरह