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मेरा स्वास्थ

रहते ही हैं, इसलिए उनकी रोकथाम जरूर करनी चाहिए। मगर खुशीकी बात है कि इन डाक्टरी यन्त्रोंने भी गत रविवारको स्वास्थ्यमें काफी प्रगति होनेका संकेत दिया है। सिस्टोलिक न्यूनतम २१८से घटकर १७८ हो गया है। और डायस्टोलिक ११० एम० एम०से बढ़कर ११८ एम० एम० पर पहुँच गया है। डाक्टर हरिभाई देसाई और उनके डाक्टर मित्रोंकी आज्ञानुसार मैं आराम भी ले रहा हूँ। और उनकी देखरेखमें अपने आहार सम्बन्धी प्रयोग भी करता जाता हूँ । डाक्टर मुथु भी, जिन्होंने शायद आहारका विशेष अध्ययन किया है, कृपापूर्वक मुझे पत्र द्वारा सलाह देते रहते हैं ।

यह सब जानकारी दे चुकने पर मैं अखबारोंके संवाददाताओंसे प्रार्थना करूँगा कि वे अपनी कलम रोकें और कृपया फिलहाल मुझे और मेरे स्वास्थ्यको भूल जायें। चिन्तित मित्रोंसे मैं यह कहूँगा कि आप मेरे स्वास्थ्यके बारेमें चिन्ता न करें। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ, कि मुझे मर जानेकी कोई जल्दी नहीं है। इसलिए उन आदर्शोंके अनुकूल जिनपर मेरा शरीर न्योछावर है, और जिन्हें मैं शरीरसे भी अधिक कीमती समझता हूँ, मेरे लिये शरीरकी जो सार-सँभाल सम्भव होगी, रखूंगा। मित्रोंको निश्चित रूपसे यह मानना चाहिए कि यदि राष्ट्रके लिए इस शरीरका कोई उपयोग है तो केवल इसीलिए है कि बहुत वर्षोंसे इसे उन आदर्शोंकी घरोहरके रूपमें रखनेका प्रयत्न गम्भीरतापूर्वक किया गया है। भले ही मुझे कोई माग्यवादी कहे किन्तु मेरा यह विश्वास है, और मैं मित्रोंको भी ऐसा ही विश्वास करनेको कहूँगा कि परमात्माकी इच्छाके बिना किसीका बाल मी बाँका नहीं हो सकता। जिस दिन उसे हमारे शरीरोंका कोई उपयोग नहीं बच रहता, उस दिन व्यक्तिका धन, प्रतिष्ठा, देशप्रेम,मित्रता इत्यादिके जरिए सम्भव सभी सार-सँभाल और उपचार आदि सभी एक तरफ घरे रह जाते हैं। इस विश्वासके मानी यह नहीं हैं कि देशके तमाम डाक्टर मित्र अत्यन्त उदारतापूर्वक मुझे जो सहायता देते उसका मैं लाभ नहीं उठाना चाहता। मैं प्रसन्नता और विश्वासके साथ वह सहायता स्वीकार करता हूँ। क्योंकि परमात्माने मुझे इस बातका कोई अन्दाज नहीं दिया है कि उसकी इच्छा क्या है, किन्तु दूसरे आवश्यक कर्त्तव्योंके साथ-साथ -- जो कि मेरी समझमें मनुष्य मात्र पर लागू है--उसने मुझे शरीर-रक्षाका भी कर्त्तव्य सौंपा है।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १६-२-१९२८