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पत्र:च० राजगोपालाचारीको

लगेगा और वे इस आरोपका खण्डन करने लगेंगे, तब इस शब्द प्रयोगको दोहरानेका कोई अवसर नहीं आयेगा । और यदि यह एक कलंक है तो जो मुसलमान हिन्दू धर्मकी सच्चाई और पवित्रतामें विश्वास करता है वह अपने साथी हिन्दू सदस्योंकी ही तरह यह क्यों नहीं मान सकता कि अस्पृश्यता हिन्दू-धर्मके लिए कलंक है ?

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया १६-२-१९२८

३१. पत्र: च० राजगोपालाचारीको

आश्रम
साबरमती
१८ फरवरी, १९२८

प्रिय च० रा०,

केलप्पनका पत्र साथ भेज रहा हूँ। मैंने उससे अपनी योजनापर आपसे बातचीत करनेको कहा है। आप जो कुछ भी सम्भव समझते हों वही किया जाये । कोषकी रकम चुक जानेके डरसे कुछ राशि देनेकी स्वीकृति प्रदान करनेसे न झिझकें । मैं तो केवल इतना ही चाहता हूँ कि जो कुछ भी किया जाये वह ठोस और सच्चा हो ।

आशा है कि मेरे स्वास्थ्यके बारेमें अब आप चिन्ता नहीं कर रहे होंगे। मैंने अभीतक दूधके सम्बन्धमें कोई व्रत नहीं लिया है और जबतक मुझे अपने प्रयोगके बिलकुल सफल होनेकी आशा नहीं बँधती, तबतक मैं कुछ नहीं करूंगा । केवल मैं ही नहीं अहमदाबादके डाक्टर भी सावधानीसे मेरी देखरेख कर रहे हैं। वे जिस समय भी चाहें प्रयोगका निषेध कर सकते हैं; मैंने उनके कहनेपर प्रयोगको समाप्त कर देनेका वायदा भी दे रखा है। लेकिन मैं चाहूँगा कि आप किसी तरह मुझे विचलित करने और दूध पीनेको राजी करनेकी बात सोचनेके बजाय ऐसे डाक्टर या चिकित्सक खोजनेकी बात सोचें जो मुझे अपने लिये उपयुक्त और शुद्ध एक ऐसे शाकाहारको तय कर लेनेमें मदद दे जो दूधकी केवल कमी ही पूरी न करे बल्कि उससे भी अधिक पौष्टिक हो। मुझे विश्वास है कि ऐसा हो तो अवश्य सकता है। इसलिए कृपया मेरे सुझावपर विचार कीजियेगा ।

क्या सिंगापुरके मित्रोंने आपको कुछ लिखा है। यदि हमें जाना है, तो मैं अप्रैलके प्रथम सप्ताह में रवाना होना चाहूँगा, क्योंकि अहमदाबादमें अप्रैलमें गर्मीका मौसम पूरे जोरसे शुरू हो जाता है; उससे बच जाना बेहतर होगा। फिर सिंगापुरसे बर्माके दौरेकी भी बात है। मैं इसके बारेमें बातचीत करना चाहूँगा। अगर वहाँ भी जाना हो, तो बहुत कम समय रह गया है। इसके सिवा यूरोपसे भी दो निमन्त्रण वहाँ जुलाई और अगस्त में जाने के लिए आये हैं। मैं उन्हें स्वीकार करनेकी सोच रहा हूँ। मेरे मनमें इसपर विचार चल रहा है। उनमें से एक निमन्त्रण तो 'वर्ल्ड

१. देखिए “पत्र: ए० फेनर ब्रॉकवेको ”, ११-२-१९२८ ।

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