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पत्र: एस्थर मेननको

सकता।...' को जब मैंने मद्रासमें देखा, वह स्वस्थ दिख रही थी और उसनेमुझे तुम्हारे बारेमें सब-कुछ बताया ।

तुमने मेरा स्वास्थ्य फिरसे बिगड़नेकी बात जरूर सुनी होगी। अब मुझे कड़ी हिदायत है कि कोई ऐसा भारी काम न करूं, जिससे शरीरपर या मनपर बोझ पड़ता हो। इसलिए चरखा कातनेके अलावा मैं लेटा ही रहता हूँ । यह पत्र मैं कातते हुए बोलकर लिखवा रहा हूँ। लेकिन चिन्ताका कोई कारण नहीं है। मेरा स्वास्थ्य बेहतर होता जा रहा है और आशा है कि शीघ्र ही मुझे घूमने-फिरनेकी इजाजत मिल जायेगी ।

हाँ, आश्रम वैसा ही चल रहा है जैसा तुमने उसे चलते देखा है। इसकी आबादी दिन-ब-दिन बढ़ रही है और आश्रम में रहनेवाले सभी लोगोंको रखनेके लिए हमारे पास घर बहुत कम पड़ गये हैं ।

मैं 'यंग इंडिया' की एक निःशुल्क प्रति तुम्हारे पतेपर भिजवानेके लिए कह रहा हूँ, और मैं यह भी प्रबन्ध करूँगा कि जितने भी पिछले अंक भेजे जा सकते हों, भेजे जायें ।

मुझे इस बातकी बड़ी खुशी है कि तुम सबका स्वास्थ्य खूब अच्छा है। मेनन इंग्लैंडमें क्या कर रहा है ? उसे मेरा प्यार कहना। जब.... जिसके बारेमें तुम जानती हो आजकल वह आश्रममें है। दिल्लीसे वापसीमें वह कुछ दिन यहाँ बिताने आई है। वहाँ वह एक महिला-परिषदमें भाग लेने गई थी। मीराबाई यहाँ है और सचमुच उसका स्वास्थ्य बहुत अच्छा रह रहा है।

सस्नेह,

बापू

श्रीमती एस्थर मेनन
१४ एसिल्वी
टारोक, डेन्मार्क

अंग्रेजी (एस० एन० १४२४१) की फोटो-नकलसे ।