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३४. पत्र : वायलेटको

आश्रम
साबरमती
१८ फरवरी,१९२८

प्रिय वायलेट,

आपका पत्र मिला । मुझे बहुत खुशी हुई कि आपने मुझे इतने खुले मनसे सब बातें विस्तारसे लिखी हैं। यद्यपि इन्दौरके भूतपूर्व महाराजाका यह प्रस्तावित विवाह बुरा है, मैं चाहूँगा कि आप उस विवाहमें और साइमन कमीशनमें जो फर्क है,उसको समझें। साइमन कमीशन एक सार्वजनिक चीज है, जबकि विवाह एक व्यक्तिगत मामला है। एक विवाहका भारतके करोड़ों लोगोंपर असर नहीं पड़ सकता, लेकिन साइमन कमीशनके कामोंका समस्त भारतके भविष्यको बेहतर या बदतर बनाने में हाथ रहना है। अब आप साइमन कमीशनपर जनताका क्षोभ समझ सकती हैं। किसी अंग्रेज या श्वेत व्यक्तिके बुरे कामोंके बारेमें कोई कुछ नहीं सोचता है। लेकिन जब कोई अंग्रेज अधिकारीकी हैसियतसे कोई गलत काम करता है तो उसपर तत्काल विरोध व्यक्त किया जाता है और वैसा करना बहुत कुछ ठीक भी है।

आपने मुझसे पूछा है कि अगर एक लाख रुपये की खादी लंकाके लोग ले लें,तो क्या आप फिर लंका आयेंगे। मुझे इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है कि लंकाके उदार लोग एक लाख रुपयेसे भी ज्यादाकी खादी ले सकते हैं, क्योंकि वह तो कोई खास बात नहीं है, लेकिन लंका आनेके लिए जो चीज मुझे प्रलोभन दे सकेगी वह खादीके लिए दिया गया अतिरिक्त दान होगा। खादी खरीदना, हालाँकि वह भी महत्वका काम है, तो मात्र पैसा देकर बदले में कुछ लेना है और खादीके लिए दान देनेसे मैं खादीके कामका दायरा गरीबसे गरीब लोगोंमें भी और बढ़ा सकता हूँ।

हृदयसे आपका,

श्रीमती वायलेट
द्वारा श्रीमती लिली मुथुकृष्णा
कासा-डेल-मार, एलेक्जेंड्रया रोड
वेलेवेट

अंग्रेजी (एस० एन० १३०७५) की फोटो-नकलसे ।