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पत्र:डा० सी० मुथुको

करेगी । वह आपके पशुओंको बेचेगी, आपके बर्तन बेचेगी और आपकी जमीन बेचेगी, किन्तु आपके पास एक ऐसी अमूल्य वस्तु भी है जिसको वह नहीं बेच सकेगी। यह वस्तु है आपकी आत्मा, आपका स्वाभिमान । यदि आप एक पलड़ेमें अपना शरीर और अपनी दूसरी सब सम्पत्ति रखें और दूसरेमें अपना स्वाभिमान, तो स्वाभिमानका पलड़ा हमेशा ही अधिक भारी रहेगा। इस स्वाभिमानको रक्षाका मन्त्र सत्याग्रहमें छुपा हुआ है। यदि आप इसकी रक्षा करनेमें जो हानि हो उसे सहनेके लिए तैयार होंगे तो जीत आपकी ही होगी। और तब यह माना जायेगा कि आप वल्लभभाई जैसे सरदारको पानेके योग्य हैं। उसी प्रकार आप वीरोंकी पंक्तिमें रखे जायेंगे। आप अपनी प्रतिज्ञाका पालन करके अपना, वल्लभभाईका, गुजरातका और भारतका गौरव बढ़ायेंगे ।

[गुजरातीसे ]
नवजीवन,१९-२-१९२८

३७. पत्र : डा० सी० मुथुको

आश्रम
साबरमती
२१ फरवरी, १९२८

प्रिय मित्र,

मेरे एक श्रद्धेय स्वर्णकार मित्रके बेटेकी एक हड्डी क्षय-ग्रस्त है । सोलनके एक सेनीटोरियममें उसका इलाज हो चुका है और वहाँसे अब उसे बम्बई ले आया गया है। अगर आप उसका इलाज अपने हाथमें लें तो पिता अब अपने बेटेको आपके इलाज में रखना चाहेगा। आप उसे जहाँ कहीं भेजनेकी सलाह दें उसे वहीं भेजा जा सकता है। अगर आपका खयाल हो कि अन्तिम रूपसे कुछ तय कर सकनेसे पहले आपको उसकी डाक्टरी परीक्षा करनी चाहिए, तो पिता यह खर्च भली-भाँति बर्दाश्त कर सकता है। यदि आप इस मामलेमें अपनी सलाह तार द्वारा देंगे और समयकी बचतके लिए तारमें वही बात श्रीयुत रेवाशंकर झवेरीको भी ७, लेबर्नम रोड, गामदेवी, बम्बईके पतेपर लिख देंगे, तो मैं आपका आभारी होऊँगा; उनका तारका पता 'मोरेलिटी' है ।

मैं आपको इस समय अपने आहारके सम्बन्धमें नहीं लिखना चाहता; इसपर बादमें लिखूँगा । लगता है कि मैं ठीक चल रहा हूँ ।

हृदयसे आपका,

डा० सी० मुथु
एगमोर
मद्रास

अंग्रेजी (एस० एन० १३०७६ तथा जी० एन० १२७१) की फोटो-नकलसे ।