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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मेरे लिये अत्यन्त ही मुश्किल है कि मुकदमा चलानेके लिए ये ही दो निर्दोष कार्यकर्ता क्यों चुने गये। अथवा इसे मैं उत्पीड़न कहूँ ? अगर ये कैदके पात्र हैं तो लाला लाजपतराय और उनके साथियोंको, अगर कोई और बड़ी सजा नहीं तो कालेपानीकी सजा तो जरूर ही मिलनी चाहिए। अगर यह कहा जाये कि विधान सभाके सदस्यों को उन संवैधानिक जुमोंके करनेका विशेष अधिकार मिल जाता है, जो विधान सभा बाहरके दूसरे मामूली आदमियोंको नहीं होता, तो फिर 'कानूनके अनुसार संस्थापित सरकार' के प्रति सोच-समझकर और जानबूझकर असन्तोष फैलानेका कसूर करनेवाला मेरे समान शायद दूसरा कोई नहीं है। मेरा तो सारा जीवन ही, सारी शक्ति ही इस सरकारका नाश करने और इस उद्देश्यके लिए जहाँ तक हो सके असन्तोषका अधिकसे-अधिक प्रचार करनेके लिए है और मेरा खयाल है कि मैं दावा कर सकता हूँ कि देव और हारोलिकरसे अधिक लोग मेरी बातें पढ़ते और सुनते हैं। किन्तु उन सरकारोंसे सच्ची सुसंगति, न्याय और साहसकी आशा नहीं की जा सकती, जो हिंसा और शोषणके बलपर चलती हैं ।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २३-२-१९२८

४८. हाथ-करघा बनाम चरखा

प्राय: बिना विचारे यह दलील दी जाती है कि केवल हाथ-करघा ही ऐसी चीज है जिसको कायम रखा जाना चाहिए और इसको मिलोंमें कते हुए सूतका उपयोग करके ही कायम रखा जा सकता है। इस दलीलके बारेमें श्रीयुत श्री बालाजी राव लिखते हैं :

जो लोग चरखेका महत्व घटाने के लिए हाथ-करघेका गुणगान करते हैं उनको यहाँ एक पुरअसर जवाब दिया गया है। लॉर्ड कर्जनन दिल्ली दरबारमें इन शब्दोंमें अपने विभागीय वैज्ञानिक कलाकारोंका मत व्यक्त करते हुए कहा था कि जैसे हाथके पंखेकी जगह बिजलीके पंखेने ले ली है, वैसे ही हाथ-करघेकी जगह अनिवार्यतः बिजलीका करघा ले लेगा।

यदि हाथ-करघेको मिलोंके सूतसे अथवा चरखेके सिवा किसी अन्य साधन द्वारा प्राप्त सूतसे कायम रखा जा सकता है, तो निस्सन्देह लॉर्ड कर्जनके उक्त कथनको निर्णायक उत्तर मान लेनेकी जरूरत नहीं है। मुझे आशा है कि इन पृष्ठोंमें छपी सामग्री से प्रतिदिन यह बात स्पष्ट हो रही है कि लॉर्ड कर्जनकी इस भविष्यवाणीके बावजूद हाथ-कताईसे हाथ-करघेकी रक्षा हो सकती है। असल बात यह है कि यदि हमारे राष्ट्रीय जीवनमें चरखेको फिर वही पुराना दर्जा मिल जाये तो हाथ-करघा और कई दूसरे घरेलू उद्योग अवश्य ही अपने आप पुनर्जीवित हो जायेंगे।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २३-२-१९२८