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४९.तिलका ताड़

मैं देखता हूँ कि अखबारोंमें लिखा जा रहा है कि मैंने आगामी १२ मार्चको अपने मर जानेकी भविष्यवाणी की है और इसलिए मैं निराश मनःस्थितिमें हूँ। यह भी कहा गया है कि मैं अपने बारेमें ऐसी भविष्यवाणियाँ करता रहता हूँ। मैं इस मजेदार खबरको नजरअन्दाज कर देता, किन्तु चिन्तित होकर कुछ मित्रोंने इसे सही मान लिया है और वे घबरा उठे हैं। अगर प्रश्नकर्ता मित्रोंने मेरी यह सलाह मानी होती कि अखवारकी खबरोंपर कभी भरोसा नहीं करना चाहिए और अखबार की खबरोंकी सच्चाईकी जाँच मूल स्रोतसे ही करनी चाहिए, तो उन्हें इतना चिन्तित न होना पड़ता। जिस संवाददाताने यह शोर शुरू किया, अगर वही अपने बयानकी सच्चाईकी जाँच कर लेनेकी भलमनसाहत दिखलाता, तो पूछनेवालोंको बड़ी चिन्तासे बचा लेता । मगर संवाददाता लोग, अपने बयानोंकी सच्चाईके बारेमें और अधिक ईमानदारी बरतने लगें तो उनका पेशा ही समाप्त हो जाये। मैं मित्रोंको बतलाना चाहता हूँ कि मैं ज्योतिषी नहीं हूँ। मैं ज्योतिष विज्ञानके बारेमें कुछ भी नहीं जानता और अगर यह विज्ञान हो भी तो इसकी उपयोगितामें मुझे सन्देह है। मैं मानता हूँ कि विधि-विधानमें विश्वास रखनेवाले हर आदमीको इससे बिलकुल दूर ही रहना चाहिए। मैं निराश भी नहीं हूँ। निराश होना मेरे स्वभावके विरुद्ध है। पर असल बात यह हुई थी कि छ: वर्ष पहले जब मुझे छ: वर्ष जेलकी सजा हुई थी, तब मुझसे किसीने स्वराज्यकी सम्भावनाके बारेमें मेरे विचार पूछे थे, तब मैंने कहा था कि बहुत सम्भव है कि छः वर्षोंकी यह अवधि परमात्माके इशारेपर निश्चित की गई हो; इन छ: वर्षोंमें या तो हम स्वराज्य ले लेंगे या मैं मर जाऊँगा; किसी देशके स्वराज्य लेनेके लिए छः वर्षका समय तो बहुत काफी होता है। उस समय भारतवर्षकी परिस्थितिको देखकर यह बात कही गई थी। मैंने इस बातका इससे अधिक महत्व और कभी नहीं समझा कि एक व्यक्ति के रूपमें स्वराज्य प्राप्तिके लिए प्रयत्न करनेमें मैं स्वयं कुछ उठा नहीं रखूंगा। यह बात भी १९२० में कही गई मेरी उसी बातके जैसी थी कि अगर कुछ शर्तें पूरी हो जायें, तो एक सालमें स्वराज्य लिया जा सकता है। उस बातका जो उपयोग हो सकता था वह हुआ; अगर और कुछ नहीं तो उससे मेरे आलोचकोंको मेरी मूर्खतापर हँसनेका मौका मिला और मैंने उस घटनापूर्ण वर्षमें देशको बहुत ज्यादा प्रयत्न करते हुए देखा।[१] साल खत्म होनेपर अहमदाबादके कांग्रेस अधिवेशन में यह कहते मैं नहीं झिझका कि यद्यपि हम कानूनन स्वराज्य प्राप्त नहीं कर सके हैं फिर भी राजनीतिकी हदतक जागरूक भारतवर्ष में जो स्वतन्त्रता दिखलाई पड़ी है और विभिन्न जातियोंमें जो एकता दिखलाई दी है, वही ठोस स्वराज्यके समकक्ष है। अगर कलकत्ता और नागपुरमें मेरी बतलाई शर्तें

  1. देखिए खण्ड १८, पृष्ठ २९१-३२२ तथा खण्ड १९ परिशिष्ट १ भी।

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