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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लोगोंने पूरी की होतीं तो कानूनन भी स्वराज्य वर्षके भीतर ही मिल जाता। मगर जैसे एक सालके भीतर कानूनन स्वराज्य लेनेमें असफल होनेपर भी मैं अविचलित रहा, उसी भाँति छः सालकी अवधिके बीतनेके दिन नजदीक आनेसे भी अविचलित हूँ। यों, वह दिन भी १२ मार्च नहीं, १७ मार्च है। मैं इस समय केवल अपने शरीरके अन्तिम दिनकी तैयारीमें नहीं लगा हूँ; बल्कि उसे जितना अच्छा बना सकूं उतना अच्छा बनानेके प्रयत्नमें लगा हुआ हूँ और गर्मी और बरसातके लिए घूमनेका अस्थायी कार्यक्रम भी निश्चित कर चुका हूँ । आखिरकार छ: साल पहले, मित्रोंसे मैंने दो बार जो बातचीत की उसमें मतलबका अंश हिन्दुस्तानकी स्वतन्त्रता प्राप्त करनेकी बात थी। किसी व्यक्तिकी मृत्युपर कुछ निर्भर नहीं करता, फिर वह व्यक्ति कितना ही बड़ा क्यों न हो; मुख्य बात तो भारतवर्षकी स्वतन्त्रता है। इसलिए हम सब व्यक्तियोंको भूल जायें और उस मूल्यवान स्वतन्त्रताकी प्राप्तिमें जान लगा दें, जो कभी डाउनिंग स्ट्रीट या किसी दूसरी जगहसे हमें कभी सौगातके रूपमें नहीं मिलेगी; बल्कि जिसे हम जब चाहें तब प्राप्त कर सकते हैं। यहाँ तक कि १७ मार्चके पहले भी उसे पा सकते हैं। इसके लिए कोई बड़ी तैयारी करना जरूरी नहीं है, सिवाय इसके कि मानसिक क्रान्ति हो जाये -- हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, पारसी, सिख, यहूदी, सबके सब मानने लगे हैं कि हम एक अखण्ड राष्ट्र हैं और इस देशमें सबका स्वार्थ एक है -- इससे अधिक और कुछ नहीं चाहिए कि हिन्दू लोग मानसिक क्रान्ति करें, किसीको ऊँच-नीच समझना भूल जायें और उन तथाकथित अछूतोंको अपने ही भाईबन्द मान लें। और अगर हम सिर्फ विदेशी कपड़ेका ही सम्पूर्ण बहिष्कार करनेका दृढ़ निश्चय कर लें तो और कोई ज्यादा प्रयत्न करनेकी जरूरत नहीं है, चाहे भले ही कोई इसपर हँसे । किन्तु मैंने जो बात बारम्बार कही है, वही फिर भी कहता हूँ, कि अगर हम इन तीनों कामोंको कर लें तो दुनियाकी कोई शक्ति हमारे जन्मसिद्ध अधिकारको लेनेसे हमें रोक नहीं सकती। जैसे कि अपने बिगाड़ेको बनाना हमारे ही हाथ है, वैसे ही अपनी आजादी हासिल करना भी हमारे ही हाथ है।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २३-२-१९२८