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५०. पत्र: उर्मिला देवीको

आश्रम
साबरमती
२३ फरवरी,१९२८

प्रिय बहन,

आपका पत्र मिला । समाचारपत्र असली चीजको बहुत बढ़ा-चढ़ा कर पेश करते हैं । जहाँ तक मुझे मालूम है, मुझे कुछ भी नहीं हुआ है। यह बात सही है कि मैं अपने दुग्ध-रहित फलाहार-प्रयोगके कारण कमजोर हो गया हूँ। परन्तु मैं डाक्टरी देखरेखमें हूँ और यह प्रयोग डाक्टरोंकी निगरानीमें तथा उनकी इजाजतसे कर रहा हूँ । इसलिए इसमें चिन्ताकी जरा भी गुंजाइश नहीं है।

आपकी आँखोंके बारेमें जानकर खेद हुआ। आपको अपनी आँखोंसे, उनकी सामर्थ्य से ज्यादा काम बिलकुल नहीं लेना चाहिए। इस वक्त महादेव बारडोली और साबरमतीके बीच बने रहते हैं। वह वल्लभभाईकी मदद कर रहे हैं। वह पिछली रातको बारडोली गये हैं और सोमवारकी सुबहसे पहले वापस नहीं आयेंगे ।

आप 'यंग इंडिया के इसी सप्ताह के संस्करणमें १२ मार्च' के सम्बन्धमें भी मेरी ओरसे कुछ देखेंगी । वास्तवमें समाचारपत्रोंकी सूचनाएँ लाभकी अपेक्षा हानि ही अधिक पहुँचाती हैं। परन्तु मुझे आपको लम्बा पत्र नहीं लिखना चाहिए । डाक्टर चाहते हैं कि मैं पूरा आराम करूँ और मैं उनकी हिदायतोंका लगभग अक्षरशः पालन कर रहा हूँ। मैं थोड़े बहुत पत्र स्वयं लिखकर या बोलकर लिखवा देता हूँ; और अपना काम 'यंग इंडिया' तथा 'नवजीवन 'के सम्पादन तक ही सीमित रखता हूँ। प्रार्थना- सभाओंमें कताई- हाजरी और सुबह शाम कुछ समय सैर करनेके सिवाय ज्यादातर बिस्तर पर पड़ा रहता हूँ ।

हृदयसे आपका,

श्रीमति उर्मिला देवी
कालीघाट

अंग्रेजी (एस० एन० १३०८१) की फोटो-नकलसे


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