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५१. पत्र : गौरीशंकर भार्गवको

आश्रम
साबरमती
१२फरवरी,[१९२८]'

प्रिय मित्र,

विवाहमें सम्मिलित होना मेरे लिये सचमुच ही असम्भव है। अन्य बातोंके अलावा डाक्टरोंकी कड़ी हिदायतें हैं। लेकिन जो विवाह होने जा रहा है उसकी मुझे खुशी है। आशा करता हूँ कि विवाहोत्सव निर्विघ्न सम्पन्न होगा और वर-वधू सानन्द रहकर वर्षों तक देशकी उपयोगी सेवा करते रहेंगे।

रामदास यहाँ नहीं है। देवदासको फिलहाल साबरमतीसे बाहर जानेकी सुविधा नहीं है।

हृदयसे आपका,

पण्डित गौरीशंकर भार्गव
फूल-निवास
सिविल लाइन्स
अजमेर

अंग्रेजी (एस० एन० १३०८२) को माइक्रोफिल्मसे ।

५२. पत्र : बी० डब्ल्यू० टकरको

आश्रम
साबरमती
२४ फरवरी, १९२८

प्रिय मित्र,

आपका अत्यन्त आनन्ददायक पत्र मिला। मैं आपकी बातकी कद्र दिलसे करता हूँ, लेकिन मैं आपकी सलाह हरगिज नहीं मान सकता । 'बुराईका प्रतिरोध मत करो' का अभिप्राय मेरे लिये निष्क्रिय प्रतिरोध कभी नहीं रहा। जिसे मैं प्रतिरोध समझता हूँ और जो प्रतिरोध मैंने किया है--उसके लिए मैंने निष्क्रिय प्रतिरोध नामको गलत माना है। बुराईका प्रतिरोध मत करो, इसकी व्याख्या है कि बुराईका प्रतिरोध बुराईसे मत करो और इसलिए इसका अनिवार्य रूपसे यह अर्थ है कि बुराईका

१. यह पत्र १९२८ के कागजोंमें रखा मिला है।