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गाय को कौन छुड़ायेगा?

जवाबमें लम्बा पत्र आया है। पत्रकी नकल मेरे पास भेजी गई है। नीचे उसके अंश दे रहा हूँ :'

मूर्खोंमें गिने जानेका जोखिम उठाकर ही मैं यह पत्र छाप रहा हूँ। अगर ब्रह्मभट्ट जातिके लोगोंमें बालिकाओंके प्रति संवेदनशीलताका अभाव हो गया होगा, अगर इस जातिके हृदयवान व्यक्तियोंमें कायरता घर कर चुकी होगी और अगर इस जातिमें लोकमत जैसी कोई चीज नहीं होगी तो एक अनमेल विवाहको कोई नहीं रोक सकेगा। इससे इस जातिके मुट्ठीभर सहृदय तरुण और तरुणियोंको डर कर अपना कर्तव्य नहीं भूलना चाहिए । शान्तिमय सुधार प्रेम अथवा धैर्यसे ही हो सकता है। स्वार्थ के वश होकर कोई आदमी चाहे जैसा क्रोध क्यों न करे, उसे सहन करते रहना चाहिए। चाहे कोई कैसा भी पाण्डित्य क्यों न बघारे, उससे प्रभावित नहीं हो जाना चाहिए। उत्साहसे और लोकमत तैयार करनेसे पिछले १२ महीनोंमें दो विवाह रोके जा सके हैं और की-कराई सगाई भी तुड़वाई जा सकी है; यहाँ तो अभी सगाईकी चर्चाभर हुई है। अगर यहाँ लोकमत तैयार किया जा सके तो बहुत सम्भव है कि कोई गरीब गाय कत्ल होने से बच जाये ।

अब जरा इस विलायतसे घूम कर आये हुए गृहस्थका पत्र देखें । मैं यह नहीं समझ सका हूँ कि वह वृद्ध पुरुषोंके सन्तान होनेका उदाहरण देकर क्या सिद्ध करना चाहता है। जो दलील उसने दी है, वह तो पाप करनेवालोंकी सनातन दलील है । उपन्यासोंमें हमने पढ़ा है कि खूनी किस प्रकार सुन्दर भाषामें खूनके फायदे बतलाता है। लुटेरे भी अपने पराक्रमको प्रशंसा करते दिखाई पड़ते हैं। किन्तु अगर हम न्यायकी ही खोज करें तो जान पड़ेगा कि पापसे जितने काम बनते दिखाई पड़ते हैं, उनसे उनके करनेवाले भले ही अपना लाभ मान लें, किन्तु जगतको लाभ नहीं होता है। बेजोड़ विवाहकी प्रथाको लीजिए। जो दृष्टान्त उपस्थित पत्रमें दिये हुए हैं, उनमें उन सभी पुरुषोंने भले ही अपना लाभ देखा हो किन्तु यह अनुभवी वृद्ध पुरुष स्वार्थ और विषयके वशीभूत उनका दुरुपयोग कर रहा है और अपने कार्यका समर्थन करता है। उन लड़कियोंने वृद्धोंके साथ विवाह करते समय क्या-क्या विचार किये होंगे, कितने निःश्वास छोड़े होंगे, इसका विचार करनेका समय इस गृहस्थको नहीं है; वह इसकी आवश्यकता भी नहीं देखता । यदि एक वृद्धको १५ या १३ वर्षकी लड़कीसे ब्याह करनेका अधिकार है तो सबको होना चाहिए। और अगर सभी वृद्ध इस तर्कके अनुसार चलें तो हम सहज ही देख सकते हैं कि प्रजाका क्या हाल होगा। सारे जगतमें कहीं बुद्धिमान पुरुषोंने बेजोड़ विवाहकी स्तुति नहीं की है। उसकी निन्दा हर एक देशमें की गई है। उसके अनेक बुरे परिणाम हिन्दुस्तानमें हम प्रत्यक्ष देख रहे हैं। इससे मैं आशा रखता हूँ कि ये सज्जन रोष और आवेशमें लिखे हुए अपने पत्रको नई दृष्टि से देखेंगे और अपनी विषयवासनापर काबू पायेंगे । यदि वह ऐसा न कर पाये तो उन्हें कोई ऐसी विधवा ढूँढ़नी चाहिए जो स्वेच्छापूर्वक विवाह करनेको तैयार हो ।

१. यहाँ नहीं दिये जा रहे हैं।