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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पुत्रकी प्राप्तिका मोह छोड़ देना भी उचित है। हमेशा ही पुत्रकी इच्छा करना पुण्य नहीं कहा जा सकता है। अगर सन्तानके विषयमें सामान्य जन्म-मरणका प्रमाण ठीक लागू हो तो वहाँ पुत्रकी इच्छा करनेकी बनिस्बत इच्छाका संयम ही करना पुण्य कर्म है। हिन्दुस्तानमें, हिन्दुस्तानकी अबकी गुलाम स्थितिमें जहाँ सब भयग्रस्त रहते हैं, तथा अपना, अपने सम्बन्धियों या अपनी मिल्कियतका रक्षण करनेकी शक्ति खो बैठे हैं, वहाँपर सन्तान उत्पन्न करना मैं तो पाप समझता हूँ ।

अब रही सेवाकी चाह । यह कितना बड़ा वहम है कि सेवाके लिए अपना ऐसा ही सगा कोई सम्बन्धी व्यक्ति चाहिए। पैसेका लालच देकर किसी बापसे उसकी लड़कीको छीन लाने और उसे अपनी समझनेमें मुझे तो उद्दण्डताकी परिसीमा जान पड़ती है। ऐसी लड़कीको अपनी माननेके बदले यह कहना ज्यादा सही होगा कि मैंने एक बांदी खरीदी है। सेवाके लिए अभी तो काफी पैसा देनेपर अच्छे और वफादार नौकर मिल सकते हैं। इस वृद्ध पुरुषके लेखमें दूसरे कई अयोग्य विचार हैं, जिन्हें मैं अभी छोड़ देता हूँ । यदि यह लेख उनकी नजरसे गुजरे तो मैं उनसे शान्तिसे विचार करने और वे जो अनुचित साहस करनेको तैयार हुए हैं, उसे छोड़ देनेकी नम्रतापूर्वक विनय करता हूँ ।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, २६-२-१९२८

५८. विद्यार्थियोंका सुन्दर सत्याग्रह

'नवजीवन' में यह अनेक बार लिखा जा चुका है कि सत्याग्रह सर्वव्यापक होने के कारण, जिस भाँति राजनीतिक क्षेत्रमें किया जा सकता है उसी भाँति सामाजिक क्षेत्र तथा धार्मिक क्षेत्रमें भी किया जा सकता है, और जिस भाँति राजकर्त्ताके विरुद्ध, उसी भाँति समाजके विरुद्ध, कुटुम्बके रुद्ध, माताके, पिताके, स्त्रीके, पतिके विरुद्ध यह दिव्य अस्त्र काममें लाया जा सकता है। क्योंकि जहाँ उसमें हिंसाकी गंध भी नहीं हो और जहाँ प्रेरक वस्तु अहिंसा यानी केवल प्रेम ही हो, वहाँ चाहे जैसी स्थिति हो इस शस्त्रका उपयोग निडर होकर किया जा सकता है। ऐसा उपयोग धर्मजके साहसी विद्यार्थियोंने धर्मजके बड़े लोगोंके विरुद्ध थोड़े ही दिन पहले करके दिखाया । उससे सम्बन्धित कागजपत्र मेरे पास आये हैं। उनसे नीचे लिखी बातें मालूम होती हैं।

थोड़े दिन पहले किसी गृहस्थने अपनी माता की बारहवींके दिन बिरादरीका भोज कराया। भोजसे एक दिन पहले इस विषयपर नौजवानों में बहुत चर्चा हुई। उनके और कई गृहस्थोंके मनमें ऐसे भोजोंसे अरुचि तो थी ही । इस बार विद्यार्थी- मण्डलने सोचा कि अबके कुछ न कुछ तो करना ही चाहिए। अन्तमें बहुतोंने नीचे लिखी तीनों या एक दो प्रतिज्ञाएँ लीं।

१. खेड़ा जिलेमें ।