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विधार्थियोंका सुन्दर सत्याग्रह

सोमवार २३-१-१९२८ के दिन बारहवींके लिए जो बड़ा भारी भोज होनेवाला है, उसमें न तो गुरुजनोंके साथ बैठकर और न परोसे हुए भोजनको घर मँगाकर खायेंगे ।

२. इस रूढ़िके विरुद्ध अपना सख्त विरोध दिखलानेके लिए उस दिन उपवास करेंगे ।

३. इस काममें अपने घर या कुटुम्बमें से जो कष्ट सहना पड़े, वह शान्ति और प्रसन्नतासे सहेंगे ।

परिणामस्वरूप, भोजके दिन बहतसे विद्यार्थियोंने, जिनमें कितने ही तो सुकुमार बालक थे, उपवास किया। इस कामसे विद्यार्थियोंने बड़े गिने जानेवाले लोगोंका क्रोध अपने सिर लिया है। ऐसे सत्याग्रहमें विद्यार्थियोंको आर्थिक जोखम भी कम नहीं ता। गुरुजनोंने विद्यार्थियोंको धमकाया कि तुम्हें जो आर्थिक मदद मिलती है वह छीन ली जायेगी और तुम्हें हम अपने मकानोंमें नहीं रहने देंगे। पर विद्यार्थी अटल रहे। भोजके दिन २८५ विद्यार्थी भोजमें शामिल नहीं हुए और कितनोंने तो उपवास भी किया ।

ये विद्यार्थी धन्यवादके पात्र हैं। मैं उम्मीद करता हूँ कि हर एक जगह समाज सुधार करनेमें विद्यार्थी आगे बढ़कर हाथ बँटायेंगे। जिस भाँति स्वराज्यकी चाबी विद्यार्थियोंके हाथ है, उसी भाँति वे समाज--सुधार और धर्म--रक्षाकी चाबी भी अपनी जेबमें लिये फिरते हैं। सम्भव है कि प्रमाद अथवा लापरवाहीके कारण उन्हें अपनी जेबमें पड़ी इस अमूल्य वस्तुका पता न हो। पर मैं आशा करता हूँ कि धर्मजके विद्यार्थियोंको देखकर दूसरे विद्यार्थी अपनी शक्तिका अनुमान कर सकेंगे । मेरी दृष्टिसे तो उस स्वर्गवासी बहनका सच्चा श्राद्ध विद्यार्थियोंने ही उपवास करके किया। जिसने भोज दिया, उसने तो अपने धनका दुरुपयोग किया और गरीबोंके लिए बुरा उदाहरण रखा। धनिक वर्गको परमात्माने धन इसलिए दिया है कि वे उसका परमार्थमें उपयोग करें। उन्हें समझना चाहिए कि विवाह या श्राद्धके अवसरपर भोज कराना गरीबोंके बूतेके बाहर है। उन्हें यह भी जानना चाहिए कि इस खराब रूढ़िसे कितने ही गरीब बरबाद हुए हैं। बिरादरीके भोजमें जो धन धर्मजमें खर्च हुआ, वही अगर गरीब विद्यार्थियोंके लिए, गोरक्षाके लिए अथवा खादीके लिए या अन्त्यज सेवाके लिए खर्च होता तो वह प्रतिफलित होता और मृतात्माको सद्गति मिलती। भोजको तो लोग भूल जायेंगे, उसका लाभ किसीको नहीं मिलेगा। विद्या- थियोंको तथा धर्मजके दूसरे समझदार लोगोंको इससे दुःख अवश्य हुआ ।

जिस भोजके लिए सत्याग्रह हुआ था, वह रुक न सका। इसलिए कोई यह शंका न करे कि सत्याग्रहसे क्या लाभ ? विद्यार्थी स्वयं यह जानते थे कि उनके सत्याग्रहका तत्काल असर होनेकी सम्भावना कम है। पर अगर उनमें यह जागृति बनी रही तो फिर कोई सेठ बारहवीं करनेका साहस नहीं करेगा। बारह वर्षका कोढ़ एक दिनमें नहीं छूटता । उसके लिए धैर्य और आग्रहकी जरूरत होती है।