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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
पंच समझा जानेवाला वृद्धवर्ग क्या समयका विचार नहीं करेगा ? रूढ़िको समाज अथवा देशकी उन्नतिका साधन माननेके बदले वह कहाँतक उसका गुलाम बना रहेगा ? अपने बालकोंको ज्ञान लेने और फिर उन्हें उस ज्ञानका उपयोग करनेसे कब तक रोकेगा ? धर्माधर्मका विचार करनेवाले प्रमाद कर रहे हैं। प्रमाद छोड़कर वे सावधान कब होंगे और कब सच्चे पंच बनेंगे ?
[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, २६-२-१९२८
नवजीवन, २६-२-१९२८
५९. पत्रः विल्फ्रेड वेलॉकको
सत्याग्रह आश्रम
साबरमती
२६ फरवरी,१९२८
प्रिय मित्र,
मैं आपको तथाकथित 'आत्मकथा' का खण्ड हस्ताक्षर करके भेज रहा हूँ। आपको यह जानने में दिलचस्पी होगी कि सभी सजिल्द खण्ड खद्दरसे बँधे हैं और खद्दरपर खर्च किये गये इस रुपयेका मतलब होता है कमसे-कम बारह आने सीधे अत्यन्त गरीब लोगोंकी जेबमें जाना ।
हृदयसे आपका,
श्री विल्फेड वेलाॅक
विक्टोरिया एवेन्यू
क्विन्टन
वरमिघम
विक्टोरिया एवेन्यू
क्विन्टन
वरमिघम
अंग्रेजी (एस० एन० १४२५०) की फोटो--नकलसे ।