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६०. पत्र : वी० एस० श्रीनिवास शास्त्रीको

सत्याग्रह आश्रम
साबरमती
२६ फरवरी, १९२८

प्रिय बन्धु,

सर हबीबुल्लाको लिखी गई आपकी अर्ध-सरकारी टिप्पणियोंकी प्रतिलिपियाँ मुझे बराबर मिलती रही हैं। मणिलाल तथा दूसरे लोग भी मुझे आपकी गतिविधियोंकी सूचना देते रहते हैं। अभीसे ही ऐसे बहुत जरूरी पत्रोंका आना शुरू हो गया है, जिनमें प्रार्थना की गई है कि आप अपने [ कार्यकालके ] वर्षके अन्तमें दक्षिण आफ्रिकासे लौट न आयें। वे कहते हैं कि आप पहलेसे ही अपने कार्यकालका समय समाप्त होनेकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। इस भयसे उनके पाँव काँप रहे हैं। मेरे पाँव तो और ज्यादा काँप रहे हैं। शायद इसलिए कि मेरे पैरोंमें तो जूते भी नहीं हैं। क्योंकि मैं वास्तव में यह महसूस करता हूँ कि यदि आप स्वास्थ्य सम्बन्धी गम्भीर कारणोंके अलावा किसी अन्य कारणसे इस समय दक्षिण आफ्रिकासे चले आये, तो राष्ट्रके लिए एक दुखदायी संकट होगा। यह कहते हुए मुझे दुःख होता है; परन्तु यह सही है कि फिलहाल दूसरा कोई व्यक्ति आपका स्थान सफलतापूर्वक नहीं ले सकता । दक्षिण आफ्रिकामें रहते हुए आपसे लोगोंका जो परिचय हुआ है, निश्चय ही उससे तिरस्कार पैदा नहीं हुआ है, बल्कि इससे उन लोगोंके मनमें, जिनके सम्मानका काममें असर पड़ता है, आपके प्रति और भी अधिक सम्मान हो गया है । जिस तरह यूरोपियोंके बीच आपका प्रभाव बढ़ा है, वैसे ही हमारे देशवासियोंमें भी आपके कट्टर अनुयायियोंकी वृद्धि हुई है। आपको उनका त्याग नहीं कर देना चाहिए । इसलिए कृपया मुझे समाश्वासनका पत्र जरूर लिखिए। मैं यह नहीं जानता कि सरकार आपसे क्या करवाना चाहेगी ।

सस्नेह,

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

[ पुनश्च : ] यदि आप यहाँ होते तो इस समयकी यहाँकी राजनीतिको पसन्द नहीं करते ।

मो० क० गांधी

अंग्रेजी (जी० एन० ८८१४ और एस० एन० ११९६३) की फोटो--नकलसे ।

१. अंग्रेजीकी कहावत 'टेम्बलिंग इन शूज'का प्रयोग करते हुए गांधीजी जूते न पहननेसे अपना कम्पन अधिक बता रहे हैं।