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६१. पत्र : जवाहरलाल नेहरूको

सत्याग्रह आश्रम
साबरमती
२६ फरवरी, १९२८

प्रिय जवाहर,

तुम्हारे पत्र मिले। दिल्लीमें जो कुछ हो रहा है, उस सबको मैं समझ रहा हूँ। अपने पत्रोंमें तुमने जो कुछ कहा है, मैं उसका प्रत्येक शब्द समझ सकता हूँ । सम्मेलनकी रोजमर्राकी कार्यवाहियोंको जैसा मैं देख समझ रहा हूँ और जैसा उनका गूढ़ार्थ देख पा रहा हूँ उससे होनेवाले क्लेशको मैं पूरी तरह ठीकसे व्यक्त नहीं कर सकता। मैंने दूरसे अध्ययन करके जो कुछ अनुमान निकाला है तुम्हारे पिताजीके प्रकाश डालनेवाले पत्रने उसीकी पुष्टिकी है। उसके बाद कल कृष्णदासको कृपलानीका पत्र मिला है। तुम्हारा जो पत्र आज आया है उसने इसे पूर्ण बना दिया है। हम लॉर्ड बर्केनहेडकी धृष्टता और आयुक्तोंकी चालबाजीके विरोधमें कितना दयनीय आचरण कर रहे हैं? मुझे सर जॉन साइमनसे, पहले ही से ज्यादा आशा नहीं थी, परन्तु इसके लिए तो मैं कतई तैयार नहीं था कि वह नौकरशाहीके जाने-पहचाने सभी दाँव-पेच लड़ायेगा । अछूतोंके साथ इस नवीनतम सौदेबाजीने तो सारी स्थितिको और भी बिगाड़ दिया है। बहरहाल हमें धैर्य रखना है। इसलिए तुम्हें धैर्य से सारी यन्त्रणा सहनी होगी और जहाँ हो सके सुधार करना होगा ।

जितनी जल्दी हो सके जरूर आओ। मुझे आशा है कि कमला अपनी ताकतको बनाये हुए है, भले ही ताकत बढ़ न रही हो। मुझे पता नहीं कि तुम्हारे पिताजीने तुम्हें यह बात बताई है या नहीं कि तुम्हारे आने से पहले जब तुम्हारे पिता मेरे साथ यहाँ बंगलोरमें थे, तब हम दोनोंने तुम्हारे बंगलोर रहने के बारेमें सोचा था--क्योंकि गर्मीके मौसममें यहाँका जलवायु बहुत बढ़िया होता है। मौसमके लगभग चार सप्ताह दुःखदायी होते हैं। परन्तु तुम हमेशा नन्दी हिल्स जा सकते हो जो बंगलोरसे सिर्फ

१. इलाहाबादसे लिखे २३ फरवरीके अपने पत्र में जवाहरलाल नेहरूने लिखा था:--मैंने कुछ ही घंटे पहले आपको पत्र लिखा था। उसमें आपको सूचना दी थी कि मैं सोमवार या मंगलबारकी रातको साबरमती पहुँच जाऊँगा। इसके एकदम बाद मुझे दिल्लीसे बुलावा आ गया कि मैं एक पखवाड़े तक था इससे भी ज्यादा दिन संविधानका मसविदा तैयार करने में सहायता देनेके लिए वहाँ रहूँ। व्यक्तिगत रूपसे में सर्वदलीय सम्मेलनसे काफी परेशान हो चुका हूँ: दस दिनों में इसका मुझपर इतना बोझ पड़ा कि में झगड़े एवं बगावतको टालनेके लिए वहां से भाग गया। तीन दिनकी गैरहाजिरीसे ही में बेहतर महसूस करने लगा हूँ लेकिन अगर सब दलोंके झगड़ोंको एक और खुराक मैंने ली तो मेरा दिमाग फिर जायेगा। इसलिए मैं दिल्लीकी बैठकोंमें बिलकुल शरीक होना नहीं चाहता हूँ। मैं कह नहीं सकता क्या कुछ हो जाये। मैं दिल्लीसे आपको तार भेजूंगा। (एस० एन० १३०७९)