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६३. पत्र : तुलसी मेहरको

फाल्गुन शुक्ल ६ [२६ फरवरी, १९२८]

चि० तुलसी महेर,

तुमारा खत मीला । व्याधि ऐसी ही वस्तु है । कहाँसे कैसे आती है बहोत वखत पता नहि चलता है। इसका दुःख नहि मानना परंतु ज्यादा आत्मनिरीक्षण करना और व्याधिके लीये भी ईश्वरका अनुग्रह मानना, यदि अपने दोषको हम जाने तो दूर करनेका प्रयत्न करना । मुझे लीखते रहो। दूधकी आवश्यकता होने पर लेना ।

बापूके आशीर्वाद

श्री तुलसी मेहर
चरखा प्रचारक
श्री तुलसी बहादुरजी मार्फत वीरगंज
रक्सौल (बिहार)

जी० एन० ६५३३ की फोटो--नकलसे ।

६४. पत्र: एल० डब्ल्यू० रिचको

आश्रम
साबरमती
२७ फरवरी, १९२८

प्रिय रिच,

मुझे आपके लम्बे पत्रको, भले ही वह एक कामकाजी पत्र है, पाकर प्रसन्नता हुई। आपके पत्रके विपरीत मैं घरेलू कामकाजसे बात शुरू करता हूँ। प्रसंगवश कह रहा हूँ कि कुमारी कनुडसन फिलहाल मेरे साथ रह रहीं हैं, उनसे यह जानकर कि आप अपनी एक टाँग खो बैठे हैं मुझे बड़ा दुःख हुआ। परन्तु वह मुझे यह नहीं बता सकी कि यह कैसे हुआ, सो लिखिए । श्रीमती रिच कैसी हैं? एरिक और हेरॉल्डके क्या हाल--चाल हैं ? मैं लड़कियोके नाम मूल रहा हूँ। आशा है कि इस कारण वे मुझे अशिष्ट नहीं मानेंगी। वे सब क्या कर रही हैं? जहाँतक मेरा सम्बन्ध है मैं बिस्तर पर पड़ा हुआ हूँ और वोलकर लिखवा रहा हूँ। इसका कारण खुद मेरा अपने स्वास्थ्य में कुछ खास गड़बड़ी महसूस करना न होकर डाक्टरोंकी यह चेतावनी है। कि मैं अभी कुछ समय तक शारीरिक तथा मानसिक उत्तेजनासे बचूं । श्रीमती गांधी

१. ढाककी मुहरसे।