पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 36.pdf/९७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६५
पत्र : एल० डब्ल्यू० रिचको

बिलकुल ठीक हैं। हरिलालने मुझे एक तरहसे छोड़ ही दिया है। वह खाता-पीता और खुश रहता है। एक तरहसे वह बहादुर लड़का है। वह अपने पापोंको छिपाकर नहीं रखता । उसका विद्रोह खुला विद्रोह है। यदि उसने अपने उधार देनेवालोंको धोखा न दिया होता तो मैं उसकी दूसरी खामियोंकी ओर ध्यान न देता । परन्तु उधार देनेवालोंको धोखा देना मैं पसन्द नहीं करता। आपको मालूम है कि मणिलाल फीनिक्समें है। रामदास और देवदास मेरे कामम मेरी मदद कर रहे हैं। पोलक अभी भारतमें हैं और अपने कामकाजके सिलसिलेमें यात्रा कर रहे हैं। मद्रासमें उनसे मेरी कुछ क्षणोंकी मुलाकात हुई थी। लन्दनके लिए रवाना होनेके पहले वे शायद आश्रम आयें । एन्ड्रयूज आश्रममें अक्सर आते रहते हैं। ३ मार्चके लगभग उन्हें यहाँ आना है। यह आश्रम एक बड़ा काम है और प्रगतिशील है। फिलहाल यहाँ लगभग दो सौ लोगोंकी बस्तीका भरण-पोषण हो रहा है। इसे एक छोटा गाँव ही समझिए । हम कपड़ा बनाने तककी सूतकी सारी प्रक्रियाओंको ही पूरा नहीं करते; हम एक छोटी डेरी और एक छोटा चर्मालय भी चला रहे हैं और थोड़ी बहुत काश्तकारी भी करते हैं। हमने कुछ फलोंके वृक्ष लगाये हैं और अपनी सब्जियाँ खुद पैदा करते हैं। हम थोड़ा अनाज और पशुओंके लिए पर्याप्त चारा उगा लेते हैं। आमतौर पर हमारे पास एक या दो यूरोपीय भी रहते हैं और ऐसे आगन्तुकोंका लगातार तांता लगा रहता है। जीवन बड़ा सादा है--यों भारतीय परिवेशको देखते हुए इतना सादा भी नहीं है। आप उतनी दूरसे जन-साधारणकी चूरकर डालनेवाली यहाँकी गरीबीका अन्दाज नहीं लगा सकते । यदि हम और भी कम खर्च करके अपना काम चला लें, तो मैं फौरन इस खर्चको कम कर दूंगा । अभी खर्च कपड़ोंको मिलाकर, परन्तु किरायेको छोड़कर, औसतन प्रति- मास एक पौण्ड बैठता है। हम रहनेका किराया तो कुछ भी नहीं दे रहे हैं। हमारे पास लगभग ७५ लड़के-लड़कियाँ हैं। उनके लिए हम एक स्कूल, जिसे मैं आदर्श स्कूल कह सकता हूँ, चला रहे हैं और वहाँ शिक्षण सम्बन्धी प्रयोग किये जा रहे हैं ।

अब मैं कामकाजकी बातपर आता हूँ। मेरा अपना विचार है कि एन्ड्रयूज अथवा शास्त्री दोनोंमें से कोई भी जितना उन्होंने पा लिया है, उससे ज्यादा नहीं पा सकते थे । मैं आपसे पूरी तरह सहमत हूँ कि संघके मन्त्रियोंको वायदोंसे पीछे हटने के लिए विवश कर दिया जायेगा, परन्तु यदि शास्त्रीको कुछ देर तक दक्षिण आफ्रिका में रहने दिया जाये, तो मेरी समझमें उनका सही और सच्चाईसे भरा दौत्य दक्षिण आफ्रिकाकी कुटिल नीतिपर विजय पा सकेगा। यदि हम १९०६ से १९१४ तकके संघर्षका पूरा-पूरा फल पाना चाहते हैं, तो हमें ईमानदारी से काम करना चाहिए और अपना दामन साफ रखना चाहिए। मैं निश्चय ही ऐसा अनुभव करता हूँ कि यदि वे लोग जो चोरी-छिपे घुस गये हैं लालच करना छोड़ दें, सच्चाईसे बात साफ स्वीकार कर लें और भविष्यमें किसी भी व्यक्तिके छलपूर्वक प्रवेशको बढ़ावा न दें, तो स्थिति सँभाली जा सकती है और प्रवासी-आबादीकी हालत धीरे-धीरे बराबर सुधारी जा सकती हैं। बहरहाल यदि इच्छा यह हो कि जो पहलेसे चोरी-छिपे घुस आये हैं उसपर पर्दा डाला जाये और साथ ही दूसरोंके लिए भी दरवाजा खुला छोड़ दिया जाये, तो मेरे

३६--५