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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

विचारमें भारतीय लोग दक्षिण आफ्रिकामें थोड़े मी आत्म-सम्मानके साथ नहीं रह सकते। इसमें मुझे कोई सन्देह नहीं कि ये किसी-न-किसी तरह टिके तो रहेंगे; क्योंकि इतने बड़े और उद्योगशील भारतीय वर्गका नामोनिशान मिटा देना तो कठिन ही होगा, किन्तु उनकी स्थिति बहुत हीन होगी; जबकि मैं चाहता यह हूँ कि दक्षिण आफ्रिकाके भारतीय केवल दक्षिणी आफ्रिकाके निर्माणमें ही सम्मानजनक योग न दें, बल्कि भारतके निर्माणमें भी हाथ बँटायें। यदि हम दक्षिण आफ्रिकामें शिष्ट आचरण करें तो यह सम्भव है कि समय आनेपर हमें नागरिकताके सारे अधिकार मिल जायें। आप इस पत्रको जिस किसी मित्रको दिखाना चाहें, दिखा सकते हैं।

आप सबको आदर सहित,

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

अंग्रेजी ( एस० एन० ११९६५) की फोटो--नकलसे ।

६५. पत्र : के० बालसुब्रह्मण्यमको

आश्रम
साबरमती
२७ फरवरी,१९२८

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। इसके बारेमें मैं जितना ज्यादा सोचता हूँ उतना ही मेरा यह विश्वास दृढ़ होता जाता है कि अंग्रेजी वस्तुओंका बहिष्कार एक व्यर्थका नारा है। भारतीय मिलोंके बहिष्कारके बारेमें मैंने नहीं सोचा है। उनके बारेमें मैंने जो कुछ कहा है सो तो यही है कि खादीकी तरह उनके लिए किसी विज्ञापनकी आवश्यकता नहीं है। यह ऐसा ही है जैसे पुराने जमे हुए उद्योगके लिए विज्ञापनकी कोई आवश्यकता नहीं होती, जबकि नये उद्योगके लिए होती है।

हृदयसे आपका,

श्रीयूत के० बालसुब्रह्मण्यम
६,लक्ष्मीविलास
मम्बलम्(मद्रास पास)

अंग्रेजी (एस० एन० १३०८८) की फोटो--नकलसे ।