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७७. पत्र : मोतीलाल नेहरूको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
१५ जुलाई, १९२८

प्रिय मोतीलालजी,

आपका पत्र[१] मिला। सौभाग्यसे वल्लभभाई भी जिला परिषद्के सिलसिलेमें यहाँ आये थे। उनसे मेरी पूरी बातचीत हुई। उनका कहना है कि कमसे-कम इस वर्ष तो इस ताजको स्वीकार करना उनके लिए सम्भव नहीं है, क्योंकि यदि बारडोली संघर्ष समाप्त भी हो जाता है तो उसके परिणामोंको स्थायी बनानेके लिए बहुत-कुछ करना शेष रह जायेगा और उसके लिए उन्हें अपना पूरा समय और शक्ति लगानी पड़ेगी। मैं समझता हूँ, उनका कहना ठीक ही है। इसलिए अब उनका तो सवाल ही नहीं रहा। आपके बारेमें जितना ज्यादा सोचा है, उतना ही ज्यादा मुझे लगता है कि आपको किसी अधिक अनुकूल अवसरके लिए सुरक्षित रखा जाना चाहिए, और मैं आपके इस विचारसे पूरी तरह सहमत हूँ कि हमें नौजवानोंको अवसर देना चाहिए। और उनमें जवाहरलालसे ज्यादा तो क्या, उसके बराबर भी कोई नहीं है। इसलिए मैंने तार द्वारा आपको सूचित किया है कि यदि मेरे तारके उत्तरमें आप तार द्वारा अपनी असहमति नहीं प्रकट करते तो मैं प्रान्तीय समितियोंसे उसका नाम स्वीकार करनेकी सिफारिश कर रहा हूँ।

कमेटी के सदस्योंके नाम जारी किया गया आपका परिपत्र आज मिला। मैं तो इससे भी एक कदम आगे जाकर भावी संसदके लिए संविधानके अन्तर्गत यह अधिकार सुरक्षित रखनेको कहूँगा कि तब हमें जो दायित्व अपने सिर लेने पड़ सकते हैं, वह न्याय और समानताकी खातिर उनमें संशोधन कर सके। आज, आपने जो नरम ढंगका सुझाव रखा है, उसे भी कार्यान्वित करनेकी शक्ति हममें है या नहीं, यह तो और बात है। लेकिन जैसा कि आपने कहा है, हमारे मनमें क्या है, यह तो बता ही दिया जाना चाहिए।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३६३६) की फोटो-नकलसे ।

 

  1. ११ जुलाई, १९२८ का पत्र (एस॰ एन॰ १३६३३), जिसमें कांग्रेस अध्यक्ष-पदके लिए वल्लभभाई पटेल अथवा जवाहरलाल नेहरूका नाम सुझाया गया था।