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मानापमानमें समत्वभाव


हिमालयकी वायु औषध-रूप है, यह आयुर्वेदमें बताया गया है। किन्तु हमें उसकी परवाह ही नहीं है। हम हिमालयके सौन्दर्यसे गर्वित नहीं होते।

यदि नवयुवकोंके लिए हिमालयकी पैदल यात्रा करना अनिवार्य कर दिया जाये तो कैसा अच्छा हो? इससे उनके स्वास्थ्य, आयु, ज्ञान, देश भक्ति और कलामें कितनी वृद्धि हो? ऐसी यात्रा सामान्य स्थितिके विद्यार्थी भी कर सकते हैं।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, १५-७-१९२८

 

७६. मानापमानमें समत्वभाव

नडियाद ताल्लुकेके लोगोंकी ओरसे २४ जूनको भाई लक्ष्मीदास पुरुषोत्तम आसर और इमाम अब्दुल कादिर बावजीरको मानपत्र दिया गया था। वहाँकी समितिके मन्त्रीने एक पत्र लिखकर इस सम्बन्धमें टिप्पणी लिखनेका अनुरोध किया है। सामान्यतः 'नवजीवन' में ऐसी बातों पर टिप्पणियाँ नहीं लिखी जातीं। सेवकोंके भागमें मान और अपमान दोनों ही आते हैं। जब हम अपमानके सम्बन्धमें टिप्पणी नहीं लिखते, तो मानके सम्बन्धमें कैसे लिखें? फिर ये दोनों सज्जन तो आश्रमवासी हैं। उनको जो मानपत्र दिया गया, हम उसपर टिप्पणी किस लिए लिखें? यदि उन्हें प्रोत्साहनके लिए मानपत्र अथवा पत्रिकाओंमें उनके उल्लेखकी जरूरत हो तो ये लोग आश्रमवासी नहीं रह सकते। फिर भी इन मानपत्रोंके पीछे एक ऐसी बात है जिसका उल्लेख करना अवश्य ही उचित है। इन दोनों सेवकोंको अंग्रेजी भाषाका ज्ञान नहीं है और गुजरातीका भी जो ज्ञान है वह उन्होंने किसी पाठशालामें प्राप्त नहीं किया है। उन्होंने अनुभवकी शालामें अध्ययन किया है। फिर भी पाठशालाओंसे अनभिज्ञ और अंग्रेजी ज्ञानसे कोरे इन तथा अन्य लोगोंकी सहायताके बिना श्री वल्लभभाई संकट निवारण के[१] महान कार्यमें कभी सफल न हो सके होते। भाई लक्ष्मीदास अपनी कार्यक्षमतासे सर पुरुषोत्तमदासको मुग्ध कर चुके हैं। "उनकी हिसाबके मामलेमें सावधानी, निष्पक्षता, ऊँचे दर्जेकी कुशलता और तन्त्र-संचालनकी शक्ति" के दर्शन सर पुरुषोत्तमदासको संकट-निवारणके प्रत्येक कार्यमें हुए थे। संकट-निवारणके अवसर पर और बारडोलीमें इस समय मिलनेवाले अनुभवसे हमें यह स्पष्ट रूपसे ज्ञान हो जाता है कि स्वराज्यका तन्त्र चलानेके लिए हमें अंग्रेजी पढ़े-लिखे अथवा अंग्रेजीमें भाषण देनेवाले विद्वान् अधिक नहीं चाहिए, उस तन्त्रको चलानेके लिए लोगोंकी भाषा जाननेवाले, उनकी आवश्यकताओंको समझनेवाले, सत्यनिष्ठ, कर्त्तव्य-परायण, लोगोंसे प्रेम रखनेवाले, उद्यमी, गरीब, निडर और मानापमानके सम्बन्धमें उदासीन सेवक चाहिए।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, १५-७-१९२८

 

  1. आशय गुजरातकी बाढ़से है।

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