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८२. पत्र: सी॰ एस॰ विश्वनाथ अय्यरको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
१८ जुलाई, १९२८

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। इससे पहले भी एक पत्र आया था। दुर्भाग्यवश अबतक मैं पाण्डुलिपि[१] को पढ़ नहीं पाया हूँ। वैसे वह बराबर मेरे सामने रहती है, लेकिन मैं काम और नई जिम्मेदारियोंके बोझसे इस तरह दबा हुआ हूँ कि इसे मैं कब पढ़ पाऊँगा सो कहना कठिन है। इतना ही कह सकता हूँ कि मैं इसे पढ़ना चाहता हूँ।

मैं ऐसा मान रहा हूँ कि आपने मुझे जो पाण्डुलिपि दी थी उसकी एक अतिरिक्त प्रति आपके पास थी। यदि आपको पाण्डुलिपिकी वापसीकी जल्दी हो तो संकोच न कीजिएगा। लेकिन अगर जल्दी न हो तो जबतक मुझे इसे पढ़नेका समय नहीं मिल जाता तबतक तो मैं इसे अपने पास ही रखना चाहूँगा।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत सी॰ एस॰ विश्वनाथ अय्यर, वकील
९०, एक्सटेन्शन, कोइम्बतूर

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३४७८) की माइक्रोफिल्मसे।

 

८३. पत्र: के॰ वेंकटप्पैयाको[२]

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
१८ जुलाई, १९२८

प्रिय मित्र,

सी॰ वी॰ रंगम् चेट्टीके बारेमें लिखी आपकी लम्बी चिट्ठी मिली। मैं निश्चय ही यह नहीं चाहता था कि आप इतना विस्तृत पत्र लिखें। जहाँतक मेरा सम्बन्ध है, मुझे इसमें कभी सन्देह नहीं रहा कि आपने अपनी समझके अनुसार जो कुछ किया ठीक ही किया।

 

  1. गीताके अनुवादको पाण्डुलिपि।
  2. श्री वेंकटप्पैथाके पत्रके साथ इस पत्रकी एक नकल आवश्यक कार्रवाई के लिए अ॰ मा॰ च॰ सं॰के मन्त्रीको भेजी गई थी।