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पत्र: सुभाषचन्द्र बोसको

 

खुद मैं यह नहीं मानता कि हमें दूसरे प्रान्तोंमें बनी खादीको अपने प्रान्तमें स्थान न देनेका आग्रह रखना चाहिए। आज इस विषय पर शंकरलालसे[१] मेरी बातचीत हुई। उन्होंने आपको अधिक विस्तारसे लिखनेका वादा किया है।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत कोंडा वेंकटप्पैया गारु
गुंटूर

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३६४२) की माइक्रोफिल्मसे।

 

८४. पत्र: सुभाषचन्द्र बोसको

आश्रम, साबरमती
१८ जुलाई, १९२८

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला और उसके साथ ही एक पत्र सतीश बाबूका भी मिला। आपने अपने पत्रकी नकल उनको भेजकर बिलकुल ठीक किया था; उन्होंने अपने पत्रमें आपके द्वारा उठाये सवालोंका तफसीलवार जवाब दिया है। सतीश बाबू लोकमतको अपने विचारके पक्षमें करनेके लिए किस तरीकेसे प्रचार कर रहे हैं, इसकी तो मुझे कोई खास जानकारी नहीं है, लेकिन आपको इतना जरूर बता दूं कि प्रदर्शनीके बारेमें सतीश बाबूके विचारसे मैं पूरी तरह सहमत हूँ। यही बात मैंने श्रीयुत सेनगुप्तको लिखे पत्रमें भी कही है। मेरे विचारसे, जबतक हमें पूरा भरोसा न हो कि अमुक चीज उपयोगी है और लोग उसे अपनायें इसके लिए उस चीज़को प्रोत्साहन देनेकी भी जरूरत है, तबतक हमें उसको प्रदर्शनीमें स्थान नहीं देना चाहिए – ऐसे यन्त्र आदिको भी नहीं। यहाँ तक कि जो चीजें उपयोगी तो हैं किन्तु जिनका उपयोग करनेके लिए कांग्रेस द्वारा जनताको प्रोत्साहन दिया जाना जरूरी नहीं है, ऐसी उपयोगी चीजोंको भी प्रदर्शनी में स्थान देना मैं ठीक नहीं मानता, क्योंकि उससे बेकार ही जनताका ध्यान बँटेगा। उदाहरणके लिए, मैं उसमें घड़ियोंको स्थान देनेके पक्षमें नहीं हूँ। यद्यपि हम घड़ियाँ नहीं बनाते, फिर भी हमें उनकी जरूरत तो है ही; लेकिन साथ ही यह बात भी ठीक है कि उनके विभिन्न निर्माताओंके पास उनके विज्ञापनके पर्याप्त साधन हैं। इस सवाल पर हममें मतभेद हो सकता है। लेकिन मतभेदोंके कारण हममें कटुता या तिक्तता पैदा हो जाये और हम अपना-अपना मत जनताके सामने न रख सकें ऐसा नहीं है। यदि सतीश बाबूके खिलाफ ऐसी कोई बात हो जिससे साबित होता हो कि उन्होंने अपने प्रचारमें अनुचित तरीकोंका सहारा लिया तो मुझे सूचित करें; मैं उसके सम्बन्धमें उन्हें सहर्ष लिखूंगा।

 

  1. शंकरलाल बैंकर।