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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


लेकिन, मुझे न आवेदनपत्रका प्रारूप[१] प्राप्त हुआ है और न योजनाका पाठ[१] ही। इसलिए मैं वैसी निश्चित सलाह नहीं दे सकता। और यद्यपि मैं आशा करता हूँ कि आगे जो जानकारी मिलेगी उसे मैं तुरन्त प्रकाशित कर दूंगा, लेकिन कोई भी और जानकारी मिलनेकी राह देखते हुए आवेदनपत्र भेजनेमें देर न लगायें।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, १९-७-१९२८

८९. असहयोग या सविनय प्रतिरोध

सरकारी क्षेत्रोंमें कुछ ऐसी आशंका व्यक्त की जा रही है कि बारडोलीमें चल रहा आन्दोलन असहयोग आन्दोलन है। इसलिए असहयोग और सविनय प्रतिरोधका भेद स्पष्ट कर देना आवश्यक है। व्यापकतर शब्द सत्याग्रहमें जिसमें सत्य तथा अहिंसा पर आधारित कोई भी प्रयास शामिल है, ये दोनों ही आ जाते हैं। जब हमने अपने संघर्षके सन्दर्भमें असहयोग शब्दका प्रयोग पहले-पहले किया तो इसमें अन्य चीजोंके अलावा वे तमाम मदें शामिल मानी गई थी जिनका उल्लेख उस कार्यक्रममें हुआ था जो १९२० में कलकत्तामें आयोजित विशेष कांग्रेस अधिवेशनमें[२] स्वराज्य-प्राप्तिके उद्देश्यसे निर्धारित किया गया था और जिसकी पुष्टि बादमें नागपुर कांग्रेसने की थी।[३] इसके अनुसार यह तय पाया गया था कि स्वराज्य-प्राप्तिके उद्देश्यके अलावा और किसी भी प्रयोजनसे वर्तमान सरकारसे न कोई वार्ता चलाना सम्भव है और न उसको कोई निवेदनपत्र आदि देना ही। यह तो सच ही है कि जैसी जागृति बारडोली में आई है, जैसा प्रयास वहाँ किया जा रहा है, वैसी कोई भी जागृति और कोई भी प्रयास हमें स्वराज्य-प्राप्तिके लिए किये गये किसी प्रत्यक्ष प्रयत्नसे भी अधिक तेजीसे स्वराज्यकी ओर ले जाता है। लेकिन बारडोली-संघर्षका उद्देश्य एक खास शिकायतको दूर कराना है। सबसे पहले प्रार्थना और आवेदनपत्रोंका पारम्परिक तरीका ही अपनाया गया था। लेकिन जब पारम्परिक तरीका बिलकुल निष्फल सिद्ध हुआ तो बारडोलीकी जनताने श्रीयुत वल्लभभाई पटेलको सविनय प्रतिरोधके लिए अपना नेतृत्व करनेको आमन्त्रित किया। इस सविनय प्रतिरोधका मतलब संविहित सत्ता द्वारा बनाये कानूनों और नियमोंकी सविनय अवज्ञा भी नहीं है। इसका मतलब तो सिर्फ उस करका एक हिस्सा न चुकाना है जिसे पीड़ित रैयत अपने ऊपर अनुचित तथा अन्यायपूर्ण ढंग से थोपा गया मानती है। वास्तव में यह कर्जका एक हिस्सा, जिसके लिए उसका महाजन उसे देनदार बताता है, देने से इनकार करना है। यदि एक सामान्य व्यक्तिको वह ऋण न चुकानेका अधिकार है, जिसे वह स्वीकार नहीं करता तो रैयतको भी वह कर न चुकानेका उतना ही अधिकार है जिसे वह अन्यायपूर्ण मानती है। लेकिन, इस

 

  1. १.० १.१ १ व २ देखिए परिशिष्ट ३।
  2. देखिए खण्ड १८, पृष्ठ २४७-४८।
  3. देखिए खण्ड १९, परिशिष्ट १।