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खादीके आनुषंगिक फल


लेखका उद्देश्य बारडोलीकी जनताकी कार्रवाईका औचित्य सिद्ध करना नहीं है। मेरा उद्देश्य तो स्वराज्य-प्राप्तिका लक्ष्य सामने रखकर चलनेवाले असहयोग और किसी शिकायतको दूर करनेके उद्देश्यसे किये गये वैसे सविनय प्रतिरोधका भेद स्पष्ट करना है जैसा कि बारडोलीमें चल रहा है। आशा है, अब यह भेद साफ-साफ समझमें आ गया होगा। और यह तो एक बिलकुल अलग बात है कि श्रीयुत वल्लभभाई पटेल तथा उनके नेतृत्व में काम करनेवाले अधिकांश कार्यकर्ता पक्के असहयोगी है। ये सब जिनका प्रतिनिधित्व करते हैं, उनमें असहयोगी कम ही लोग हैं। राष्ट्रीय असहयोग स्थगित है। लेकिन असहयोगीका व्यक्तिगत धर्म उन्हें उन लोगोंके पक्षमें खड़ा होनेसे नहीं रोकता जो अपनी असहायावस्थाके कारण सहयोगी बने हुए हैं।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, १९-७-१९२८

 

९०. सावन्तबाड़ी में कताई

श्रीयुत एस॰ पी॰ पटवर्धन[१] द्वारा तैयार किया गया निम्नलिखित विवरण[२] कुछ दिनोंसे मेरी फाइलमें पड़ा हुआ था। आम पाठक इसे रुचिसे पढ़ेंगे और खादी-कार्यकर्त्ता इसे पढ़कर लाभ उठा सकते हैं।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, १९-७-१९२८

 

९१. खादीके आनुषंगिक फल

इसी महीनेकी १४ तारीखको तमिलनाडके तिरुचेनगोडमें श्रीयुत च॰ राजगोपालाचारी द्वारा संचालित गांधी आश्रममें एक धर्मार्थ-चिकित्सालय खोला गया है, जिसका उद्घाटन डॉ॰ रायने किया। सभामें पढ़ी गई रिपोर्टसे लगता है कि वहाँ खादीको केन्द्र बनाकर अस्पृश्यता और मद्यपान-निवारण, गाँवोंकी सफाई तथा चिकित्सा-सम्बन्धी सहायताकी प्रवृत्तियाँ भी प्रारम्भ कर दी गई हैं। आश्रम १७५ गाँवोंमें काम कर रहा है और खादीके जरिये इन गाँवोंको प्रति वर्ष ४५,००० रुपये प्राप्त हो रहे हैं। अस्पृश्यता-निवारणके लिए जो तरीका अपनाया गया है वह है, 'अस्पृश्यों' की उसी प्रकार सेवा-सहायता करना जिस प्रकार दूसरे लोगोंकी की जाती है। अब आश्रमका इरादा पैसेकी व्यवस्था होते ही उनके लिए ५ कुएँ खुदवाने और छोटे-छोटे घर बनवानेका है। उसे १०,००० रुपयेकी जरूरत है, जिसमें पाँच हजार रुपये पाँच कुओंके लिए चाहिए। कुओंकी बहुत सख्त जरूरत है, क्योंकि 'अस्पृश्यों 'को "अपनी दैनिक आवश्यकताओंके लिए पानी लेने बहुत दूर जाना पड़ता है और तरह-तरहके

 

  1. एक निष्ठावान खादी-कार्यकर्ता, जो पहले आश्रमको राष्ट्रीय पाठशाला में काम करते थे और बादमें कोंकण में काम करने चले गये थे।
  2. यहाँ नहीं दिया जा रहा है।