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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


अपमान और कठिनाइयाँ सहनी पड़ती हैं"। १९ महीनोंमें आश्रमने १८,०९५ स्त्रियों और पुरुषोंको चिकित्सा-सम्बन्धी सहायता प्रदान की। यह जरूरत इतनी बढ़ गई कि उसे ५,००० रुपये खर्च करके एक अच्छा-खासा दवाखाना खोलना पड़ा। इसीके उद्घाटनके लिए डॉ॰ राय इतनी दूरकी यात्रा करके आश्रम गये। अस्पताल पर प्रति मास २०० रुपये खर्च आता था, जिसे खादी-कार्यसे प्राप्त लाभके जरिए पूरा किया जाता था। लेकिन अब अनुदानोंकी आवश्यकता महसूस हो रही है। मैं समझता हूँ, सफाई-सम्बन्धी कार्योंके बारेमें रिपोर्टमें जो कुछ कहा है, उसे यहाँ ज्यों-का-त्यों उद्धृत कर देना चाहिए:[१]

ये खादीके अनेक आनुषंगिक फलोंके कुछ नमूने हैं। जो लोग खादीका मजाक उड़ाते हैं, वे जरा इसपर ध्यान दें; और मित्रोंसे मेरा यह अनुरोध है कि वे इस आश्रमकी सहायता करें, क्योंकि वह जनसाधारणको आत्मनिर्भर तथा स्वावलम्बी बनाकर उनकी सच्ची सेवा कर रहा है और इस तरह धीरे-धीरे किन्तु निश्चित रूपसे उन्हें प्रभावित-अनुप्राणित कर रहा है।

[अंग्रेजी से]

यंग इंडिया, १९-७-१९२८

 

९२. पत्र: टी॰ आर॰ फूकनको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
१९ जुलाई, १९२८

प्रिय मित्र,

आपके यहाँ अखिल भारतीय चरखा संघकी ३१९-२-३ रुपयोंकी रकम बहुत दिनोंसे बकाया चली आ रही है। क्या अब आप उसका भुगतान कर सकेंगे?[२]

हृदयसे आपका,

श्रीयुत टी॰ आर॰ फूकन
गोहाटी (असम)

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३६४४) की माइक्रोफिल्मसे।

 

  1. इसकी एक प्रति अ॰ मा॰ च॰ सं॰ के मन्त्रीके १८ जुलाईके दफ्तरी पत्र, सं॰ ३१८३ के सम्बन्धमें उन्हें अहमदाबाद भेज दी गई थी।
  2. इसका अनुवाद यहाँ नहीं दिया जा रहा है। रिपोर्ट में कहा गया था कि यहां के लोग बड़े रूढ़िवादी हैं और नई चीजोंको स्वीकार करनेको तैयार नहीं होते। इसलिए सफाईका काम बच्चोंसे प्रारम्भ करनेका निश्चय किया गया। तदनुसार बच्चोंके लिए एक स्नान-योजना तैयार की गई, जिसके अन्तर्गत पड़ोसके बारह वर्षसे कम उम्रके सभी बच्चोंके लिए शनिवारको तेल और साबुन लगाकर और मंगलवारको साबुन लगाकर नहानेकी व्यवस्था की गई। इस कामको डाक्टर तथा आश्रमके सदस्य अपनी देख-रेखमें सामने खड़े होकर करवाते हैं। पहले तो बहुतसे बच्चे नहाने आते थे, लेकिन अब संख्या घटते-घटते २० रह गई है। इस योजनाका लाभ सिर्फ अस्पृश्योंने उठाया है।