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१०१. सरकारकी कुबुद्धि

बम्बई अहातेके गवर्नर शिमला गए थे। उनके सम्बन्ध में प्रकाशित खबरोंके आधारपर मैंने यह मान लिया था कि श्री वल्लभभाई सरकारके जिस हृदय-परिवर्तनकी बात बार-बार कह रहे हैं वह हृदय-परिवर्तन हो गया है। किन्तु सूरतकी बातचीतके[१] परिणामसे तो ऐसा लगता है कि सरकारका हृदय जब नरम तक नहीं पड़ा है, तब उसमें परिवर्तनकी बात ही क्या करें? उसका हृदय तो पत्थरसे भी अधिक कठोर हो गया है।

सरकारकी जो विज्ञप्ति सभी अखबारोंमें प्रकाशित हुई है उसकी प्रत्येक पंक्तिमें मुझे तो सरकारकी विपरीत बुद्धि ही दिखाई दे रही है। पाँच घंटेकी बातचीतके बाद स्थिति ज्यों-की-त्यों ही रही। हम जिन बातोंको अखबारोंमें पढ़ते आ रहे हैं सरकारी विज्ञप्तिमें उनसे एक बात भी ज्यादा नहीं है। बारडोलीके सत्याग्रहियोंकी माँग क्या है, यह समझनेका तो प्रयत्न तक नहीं किया गया दिखाई देता।

जैसे कोई बालक अपनी नासमझीके कारण किसी उपयोगी वस्तुके बजाय खिलौनेकी ही जिद करता है वैसे ही सरकार न्याय-रूपी उपयोगी वस्तुको छोड़कर अपने प्रतिष्ठा-रूपी खिलौनेसे चिपटी हुई है। वह उससे जितना अधिक चिपटती है, वह उससे उतना अधिक हटता जाता है। जब यह लड़ाई खत्म होगी तो प्रतिष्ठाके बजाय नामूसी ही सरकारके हाथ लगेगी।

सरकार जिस बातकी जाँच करना स्वीकार करती है, वह जैसी जाँच सत्याग्रही चाहते हैं उससे जुदा है। सत्याग्रही इस सम्बन्धमें जाँच नहीं करवाना चाहते कि पहली जाँचमें जो बढ़ा-चढ़ाकर कहा गया है या जो छोड़ दिया गया है या तथ्योंको समझनेमें जो भूल हुई है उसकी जाँच की जाये। ये त्रुटियाँ तो इतनी स्पष्ट हैं कि जाँच करनेवालोंके विवरणमें जो चाहे उसे दिखाई पड़ सकती हैं। उनका तो यह कहना है कि जाँच करनेवालोंने जाँच कायदेके मुताबिक ही नहीं की है। इसलिए सत्याग्रही यह मांग करते हैं कि समूची जाँच ही फिरसे की जानी चाहिए। यदि ऐसा नहीं किया जाता तो दूसरी किसी भी प्रकारकी जाँचसे तो लोगोंको न्याय नहीं मिलेगा। इसलिए जाँचकी शर्तें तो पहले ही निश्चित हो जानी चाहिए। बारडोली या बालोडके लोग यह नहीं कहते कि त्रुटियाँ दो-चार या इससे अधिक मामलों में ही हुई हैं। उनका कहना तो यह है कि पूरी जाँच त्रुटियोंसे भरपूर है। सत्याग्रहियोंका कथन है कि सरकारने जो बढ़ा हुआ लगान कूता है उसको उचित सिद्ध करनेके लिए उसके पास लगानके कायदेके मुताबिक कोई सामग्री नहीं है। इसलिए सरकारने जो बढ़ा हुआ लगान तय किया है, वह वाजिब है, यह सिद्ध करनेका बोझ सरकारके

 

  1. देखिए "भेंट: बारडोलीके सम्बन्ध में एसोसिएटेड प्रेस ऑफ इंडियाको", २०-७-१९२८ की पाद-टिप्पणी १।