पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 37.pdf/१२३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
८९
टिप्पणियाँ


इस प्रतिज्ञाका अक्षरशः पालन किया है। उन्होंने इस लड़ाईमें जो कदम उठाये हैं, उनमें उनसे मेरी पूरी सहानुभूति है। इस समय जिस गम्भीर स्थितिके उत्पन्न होनेकी सम्भावना है उसके सम्बन्धमें श्री वल्लभभाई जो कदम उठायेंगे, उसमें उनसे मेरी पूरी सहानुभूति है। और यदि वे गिरफ्तार कर लिये गये तो मैं बारडोली जानेके लिए पूरी तरह तैयार हूँ। वे जबतक बारडोलीमें हैं तबतक मेरे वहाँ जाने अथवा वहाँके आन्दोलनमें किसी अन्य प्रकारसे सक्रिय भाग लेनेकी जरूरत मुझे दिखाई नहीं देती। इसकी जरूरत वे भी नहीं समझते। जहाँ एक-दूसरे पर पूरा विश्वास हो वहाँ बाह्य शिष्टता अथवा आडम्बरके लिए अवकाश नहीं हो सकता।

चरखेका प्रभाव

बढवान राष्ट्रीय शिक्षा-मण्डलके प्राण भाई फूलचन्द प्रारम्भसे ही बारडोली-संग्राम में भाग ले रहे हैं। वे फिलहाल वेड़छीमें काम कर रहे हैं। वहाँसे वे लिखते हैं:[१]

जिन्हें चरखेके प्रति विश्वास नहीं है वे आलोचना करते हुए कह सकते हैं कि भाई फूलचन्दने चरखेके बारेमें जो दावा किया है ऐसा दावा तो किसी भी धन्धेका प्रचार करके किया जा सकता है। यह ठीक है कि किसी भी शुभ उद्यमका फल शोभनीय ही होता है, फिर भी एक धन्धेका दूसरेसे अन्तर तो होता ही है। किसी उद्यमसे मनुष्यका शरीर बनता है तो किसीसे मन; किसीसे शान्ति उत्पन्न होती है और किसीसे आदमी भाग-दौड़ में पड़ जाता है। मैं स्काटलैंडके एक अनुभवी शिक्षककी राय पहले दे चुका हूँ कि चरखा चलाना एक ऐसा काम है जिसे प्रारम्भ करनेसे अशान्त और चंचल व्यक्ति शान्त और स्थिर हो जाता है, और क्रोध करना छोड़ देता है। फिर धन्धेके पीछे मनकी जो भावना होती है, वही गुण उसमें पैदा किये जा सकते हैं। यदि चरखेकी प्रवृत्तिका प्रचार करनेवाले दंपती साधु प्रवृत्तिके हों और वे चरखेको लोगों में साधुता उत्पन्न करनेका निमित्त बनायें तो उससे वैसे गुण प्रतिफलित होते दीखेंगे। इसलिए कहा जा सकता है कि वेड़छीके आसपास फूलचन्दभाई को जो निर्भयता और खरापन आदि गुण दिखाई देते हैं, वास्तव में उनका मूल चरखा न होकर, भाई चुनीलाल और उनकी पत्नी हैं। उन्होंने चरखेको अपने गुणोंसे गूंथ दिया है और यह दावा तो अवश्य किया जा सकता है कि उन्होंने जितनी सरलता से इन गुणोंका प्रचार चरखेके माध्यमसे किया, उतनी सरलतासे किसी और माध्यमके द्वारा नहीं किया जा सकता था।

भजन मण्डली के बारेमें भी यही बात है। भजन मण्डलीसे पाखण्ड भी फैल सकता है और पवित्रताके प्रचारका तो वह सनातन उपाय है। इसमें सन्देह नहीं कि भजन-मण्डलियोंने बारडोलीके संघर्षमें बहुत बड़ा हाथ बँटाया है और इन दोनों प्रवृत्तियोंका मूल धर्म ही है। यदि बारडोलीका युद्ध धार्मिक भावनाके अनुसार न

 

  1. यहाँ नहीं दिया जा रहा है। इसमें चरखे के प्रचारसे वेड़छीमें जो सुफल प्राप्त हुए थे, उनका विवरण दिया गया था और बताया गया था कि भजन-मण्डलियोंके द्वारा वहाँ खादी तथा अन्य सदुद्देश्योंका प्रचार कैसे किया गया था।