चलता तो आजतक उसमें जो सफलता मिली है वह कदापि देखनेमें न आती। जाने-अनजाने लोग धर्मके भूखे हैं। उन्हें सत्याग्रह तथा सत्याग्रहके सेनापतिमें धर्म-भावना दिखी, इसीलिए वे उसके पीछे चले और हम अन्ततक उनके इसी प्रकार चलने के लक्षण देख रहे हैं।
[गुजराती से]
नवजीवन, २२-७-१९२८
१०३. पत्र: वसुमती पण्डितको
२२ जुलाई, १९२८
आज गलतीसे १ बजे उठ गया हूँ। तुमने ठीक श्लोक[१] ढूंढ निकाला है। बुखार क्यों आता है? बरसात में बाहर निकलनेसे ही बुखार नहीं आ जाता। शरीर रोगके लिए तैयार रहा होगा। किसीकी भूल तो अवश्य बताई जा सकती है किन्तु ऐसा प्रेमपूर्वक किया जाना चाहिए। तुम्हें छतरी मिल गई होगी। सम्मिलित भोजनालयने बढ़िया प्रगति की है।
बापूके आशीर्वाद
कन्या गुरुकुल
गुजराती (सी॰ डब्ल्यू॰ ४८५) से।
सौजन्य: वसुमती पण्डित
१०४. एक पत्र
सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
२२ जुलाई, १९२८
श्रीयुत गुलजारीलालसे[२] मैंने विस्तारसे बातचीत की। वे हड़तालकी परिस्थितियों का आरम्भिक अध्ययन करके अभी-अभी बम्बई से लौटे हैं। हड़ताल-समितिके प्रमुख नेताओंके साथ उनकी एक बैठक हुई थी। दुर्भाग्यवश, आप उसमें उपस्थित नहीं थे। हड़तालियोंके अगुआ लोग श्रमिक संघके नाम आपकी एक अपील लेकर अहमदाबाद आये थे। वे मुझसे भी मिले और उन्होंने मुझसे चन्दा उगाहने में सक्रिय सहायता देने को कहा – बल्कि संघको अपने कोषसे पैसा देनेकी सलाह देनेको भी कहा।