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सरकारसे एक अनुरोध


लेकिन मैंने कहा कि मैं ऐसा नहीं कर सकता, क्योंकि मैं किसीके दान या सार्वजनिक चन्देके बलपर हड़ताल चलानेके पक्षमें नहीं हूँ। मैंने कहा कि मेरा तरीका तो हड़तालियोंको हड़तालके दौरान कोई और काम ढूंढ़कर करनेके लिए प्रोत्साहित करना और इस तरह उन्हें आत्मनिर्भर बनाना है। उन्हें मैंने यह भी बताया कि मेरे अहमदाबादमें आ बसने के बाद किस प्रकार अहमदाबादकी पहली बड़ी हड़तालका संगठन और संचालन किया गया था?[१] उनसे यह भी कहा कि मैंने बम्बईकी स्थितिका अध्ययन नहीं किया है और मुझे ठीक-ठीक यह मालूम नहीं कि हड़तालियोंका पक्ष क्या है, न मुझे आपके अलावा इस आन्दोलनको चलानेवाले किसी नेताके बारेमें ही कोई जानकारी है। इन परिस्थितियोंको ध्यान में रखते हुए मैंने उनसे कहा कि मैं सक्रिय सहायता तो नहीं दे सकता, लेकिन आप चाहें तो मिल-मजदूरोंके बीच जाकर, वे अपनी इच्छासे जो-कुछ दें, उगाह सकते हैं और मैं आपको भरोसा दिलाता हूँ कि प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष किसी भी रूपमें मैं उन्हें चन्दा देने से मना नहीं करूँगा।

लेकिन फिर यह विचार हुआ कि यह स्थिति ठीक नहीं है और चूंकि यहाँके संघसे सीधी अपील की गई है, इसलिए इस समस्याका अध्ययन करना जरूरी है। इसीलिए श्रीयुत गुलजारीलालको बम्बई भेजा गया। उनसे मेरी जो बातचीत हुई, उससे मुझे इस बातकी तसल्ली नहीं हो पाई है कि श्रमिक संघ जितनी दूर जा चुका है, उसे उससे आगे भी जाना चाहिए। अब मैं आपका परामर्श चाहता हूँ। चूंकि अब आप मेरे विचारोंको जानते हैं, इसलिए. . .[२]

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३२३७) की माइक्रोफिल्मसे।

 

१०५. सरकारसे एक अनुरोध[३]

इस अनुरोधके छपकर प्रकाशित होते-होते शायद बम्बई सरकार बारडोली-समस्याके बारेमें अपना निर्णय ले चुकी होगी। यह अनुरोध मैं आज सोमवारको तीसरे पहर, जब शायद गवर्नर महोदय कौंसिलके सामने अपना वक्तव्य दे रहे होंगे, तैयार कर रहा हूँ। मैं यह भी जानता हूँ कि अनुरोध अनसुना कर दिया जायेगा। लेकिन सत्याग्रहीके नाते मेरा काम किसी भय या आशंकासे चुपचाप बैठे रहना नहीं, बल्कि परिणामकी परवाह किये बिना, जो ठीक है, वह करते जाना है। इस आन्दोलनके साथ मेरा बहुत गहरा सरोकार रहा है। इसलिए शायद मेरा यह कर्त्तव्य हो जाता कि मैं सरकारसे वह रास्ता अख्तियार न करनेका अनुरोध करूँ जिसकी सभीने

 

  1. तात्पर्य १९२८ की अहमदाबादके मिल-मजदूरोंकी हड़तालसे है; देखिए खण्ड १४।
  2. साधन-सूत्र अधूरा है।
  3. यह 'सोमवार', २३ जुलाई, १९२८ को लिखा गया था; देखिए, "पत्र: बल्लभभाई पटेलको", २४-७-१९२८ भी।